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________________ भगवती सूत्र श. ३ : उ. ५ : सू. १९६-२०४ गौतम ! जैसे कोई युवक युवती का हाथ प्रगाढ़ता से पकड़ता है तथा गाड़ी के चक्के की नाभि आरों से युक्त होती है, उसी प्रकार भावितात्मा अनगार वैक्रिय समुद्घात से समवहत होता है यावत् गौतम ! वह भावितात्मा अनगार सम्पूर्ण जम्बूद्वीप द्वीप को अनेक स्त्रीरूपों से आकीर्ण, व्यतिकीर्ण, उपस्तृत (बिछौना - सा बिछाया हुआ), संस्तृत ( भली-भांति बिछौना-सा बिछाया हुआ), स्पृष्ट और अवगाढ़ावगाढ़ ( अत्यन्त सघन रूप से व्याप्त) करने में समर्थ है। गौतम भावितात्मा अनगार (की विक्रिया शक्ति) का यह इतना विषय केवल विषय की दृष्टि से प्रतिपादित है । भावितात्मा अनगार ने क्रियात्मक रूप में न तो कभी ऐसी विक्रिया की, न करता है, और न करेगा। इस परिपाटी से यावत् स्यन्दमानिका तक ज्ञातव्य है । १९७. जैसे कोई भी पुरुष तलवार और ढ़ाल ग्रहण कर जाए इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी क्या हाथ में तलवार और ढ़ाल ले कृत्यागत होकर (माया या विद्या का प्रयोग कर ) ऊपर आकाश में उड़ता है ? हां, उड़ता है। १९८. भन्ते ! भावितात्मा अनगार हाथ में तलवार और ढ़ाल ले कितने कृत्यागत रूपों की विक्रिया करने में समर्थ है ? गौतम ! जैसे कोई युवती युवती का हाथ प्रगाढ़ता से पकड़ता है, वही (सू. १९६) वक्तव्यता यावत् भावितात्मा अनगार ने क्रियात्मक रूप में न तो कभी ऐसी विक्रिया की, न करता है और न करेगा। १९९. जैसे कोई पुरुष एक हाथ में पताका लेकर जाए, इसी प्रकार भावितामा अनगार क्या एक हाथ पताका ले कृत्यागत होकर ऊपर आकाश में उड़ता है ? हां, उड़ता है। २००. भन्ते! भावितात्मा अनगार एक हाथ में पताका ले कितने कृत्यागत रूपों की विक्रिया करने में समर्थ है ? वही (सू. १९६) वक्तव्यता यावत् भावितात्मा अनगार में क्रियात्मक रूप में न तो कभी ऐसी विक्रिया की, न करता है और न करेगा । २०१. इसी प्रकार दोनों हाथों में पताका लिए हुए पुरुष की वक्तव्यता । २०२. जैसे कोई पुरुष एक ओर यज्ञोपवीत धारण कर जाए, इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी क्या एक ओर यज्ञोपवीत धारण किए हुए कृत्यागत होकर ऊपर आकाश में उड़ता है ? हां, उड़ता है। २०३. भन्ते ! भावितात्मा अनगार एक ओर यज्ञोपवीत धारण किए हुए कितने कृत्यागत रूपों की विक्रिया करने में समर्थ है ? वही (सूत्र. १९६ की) वक्तव्यता यावत् भावितात्मा अनगार ने क्रियात्मक रूप में न तो कभी ऐसी विक्रिया की, न करता है और न करेगा । २०४. इसी प्रकार दोनों और यज्ञोपवीत धारण किए हुए पुरुष की वक्तव्यता । १३५
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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