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भगवती सूत्र
श. ३ : उ. ५,६ : सू. २१५-२२४ हुई पताका के रूप में जाता है? गौतम! वह ऊपर उठी हुई पताका के रूप में भी जाता है और नीचे गिरी हुई पताका के रूप में भी जाता है। २१६. भन्ते! क्या वह अनगार है? अश्व है?
गौतम! वह अनगार है, अश्व नहीं है। २१७. इसी प्रकार यावत् अष्टापद-रूप की अभियोजना के विषय में ज्ञातव्य है। २१८. भन्ते! क्या मायी विक्रिया (रूप-निर्माण) करता है? अमायी विक्रिया करता है?
गौतम! मायी विक्रिया करता है, अमायी विक्रिया नहीं करता। २१९. भन्ते! मायी उस स्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण किए बिना मर- कर वहां उपपन्न होता है?
गौतम! आभियोगिक देवलोकों में से किसी एक देवलोक में देवरूप में उपपन्न होता है। २२०. भन्ते! अमायी उस स्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण के पश्चात् मरकर कहां उपपन्न होता है?
गौतम! अनाभियोगिक देवलोकों में से किसी एक देवलोक में देवरूप में उपपन्न होता है। २२१. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
स्त्री, तलवार, पताका, यज्ञोपवीत, पर्यस्तिका, पर्यंक, अभियोग, विक्रिया और मायी इस उद्देशक में ये विषय वर्णित हैं।
छठा उद्देशक भावितात्म-विकिया-पद २२२. भन्ते! क्या भावितात्मा अनगार जो मायी, मिथ्या-दृष्टि है, वीर्य-लब्धि, वैक्रिय-लब्धि
और विभंग-ज्ञान-लब्धि से सम्पन्न है, वह वाराणसी नगरी में वैक्रिय-समुद्घात का प्रयोग करता है. प्रयोग कर राजगृह नगर में विद्यमान रूपों को जानता-देखता है?
हां, जानता-देखता है। २२३. भन्ते! क्या वह यथार्थभाव को जानता-देखता है? अन्यथाभाव (विपरीत-भाव) को जानता-देखता है? गौतम! वह यथार्थभाव को नहीं जानता-देखता है, अन्यथाभाव को जानता-देखता है। २२४. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है वह यथार्थभाव को नहीं जानता-देखता,
अन्यथाभाव को जानता-देखता है? गौतम! उसके इस प्रकार से दृष्टिकोण होता है-मैंने राजगृह नगर में वैक्रिय-समुद्घात का प्रयोग किया है, प्रयोग कर मैं वाराणसी नगरी में विद्यमान रूपों को जानतादेखता हूं। यह उसके दर्शन का विपर्यास है। गौतम! इस अपेक्षा से कहा जा रहा है वह
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