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________________ भगवती सूत्र श. ३ : उ. २ : सू. ११६-११९ करता हूं! देवानुप्रिय! आप मुझे क्षमा करें। देवानुप्रिय! आप क्षमा करने में समर्थ है। देवानुप्रिय! मैं पुनः ऐसा न करने के लिए संकल्प करता हूं। ऐसा कहकर वह मुझे वन्दन-नमस्कार करता है, वन्दन-नमस्कार कर उत्तर-पूर्व दिशा (ईशानकोण) में चला जाता है। वहां वह दाएं पांव से तीन बार भूमि का विदलन करता है और विदलन करके असुरेन्द्र असुरराज चमर से इस प्रकार बोला हे असुरेन्द्र ! असुरराज ! चमर ! श्रमण भगवान् महावीर के प्रभाव से अब तुम मुक्त हो गए हो, इस समय तुमको मुझसे भय नहीं है। ऐसा कहकर वह जिस दिशा से आया था, उसी दिशा में चला गया। शक्र, चमर और वज्र का गति-विषयक-पद ११७. भन्ते! इस सम्बोधन से सम्बोधित कर भगवान् गौतम श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन-नमस्कार करते हैं, वन्दन-नमस्कार कर इस प्रकार बोले–भन्ते! महर्द्धिक यावत् महान् सामर्थ्य वाला देव पहले पुदगल का प्रक्षेपण कर फिर उसका पीछा कर उसे पकड़ने में समर्थ हां, है। ११८. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-महर्द्धिक यावत् महान् सामर्थ्य वाला देव पहले पुद्गल का प्रक्षेपण कर फिर उसका पीछा कर उसे पकड़ने में समर्थ है? गौतम! पुद्गल फेंके जाने पर वह पहले शीघ्र गति वाला होता है फिर मन्द-गति वाला हो जाता है। महर्द्धिक यावत् महान् सामर्थ्य वाला देव पहले भी और पीछे भी शीघ्र और शीघ्र गति वाला, त्वरित और त्वरित गति वाला होता है। इस अपेक्षा से वह उसे पकड़ने में समर्थ ११९. भंते! यदि महर्द्धिक देव पीछा करके पहले फेंके गए पुद्गल को पकड़ने में समर्थ है तो देवेन्द्र देवराज शक्र असुरेन्द्र असुरराज चमर को अपने हाथ से क्यों नहीं पकड़ सका? गौतम! असुरकुमार-देवों का नीचे लोक में गति का विषय-शीघ्र-शीघ्र और त्वरित-त्वरित है, ऊंचे लोक में उनकी गति का विष अल्प-अल्प और मंद-मंद है। वैमानिक देवों का ऊंचे लोक में गति का विषय शीघ्र-शीघ्र और त्वरित-त्वरित है, नीचे लोक में उनकी गति का विषय अल्प-अल्प और मंद-मंद है। देवेन्द्र देवराज शक्र ऊंचे लोक में एक समय में जितने क्षेत्र में चला जाता है, उतने क्षेत्र के अवगाहन में वज्र को दो समय लगते हैं। वज्र का जितने क्षेत्र के अवगाहन में दो समय लगते हैं, उतने क्षेत्र के अवगाहन में चमर को तीन समय लगते हैं। देवेन्द्र देवराज शक्र का ऊर्ध्वलोक-कण्डक सबसे थोड़ा, अधो-लोक-कण्डक उससे संख्येयगुणा। असुरेन्द्र असुरराज चमर नीचे लोक में एक समय में जितने क्षेत्र में चला जाता है, उतने क्षेत्र के अवगाहन में शक्र को दो समय लगते हैं। शक्र को जितने क्षेत्र के अवगाहन में दो समय लगते हैं उतने क्षेत्र के अवगाहन में वज्र को तीन समय लगते हैं। असुरेन्द्र असुरराज चमर का अधो-लोक-कण्डक सबसे थोड़ा, ऊर्ध्व-लोक-कण्डक उससे संख्येयगुणा। १२३
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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