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________________ भगवती सूत्र श. ३ : उ. १: सू. १०-१४ अणगार से इस प्रकार कहा - गौतम ! द्वितीय गोतम अग्निभूति अनगार तुम्हारे सामने इस प्रकार आख्यान, भाषण, प्रज्ञापन और प्ररूपण करता है - गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर महान् ऋद्धि वाला है। पटरानियों तक का समग्र वक्तव्य पुनरावर्तनीय है । यह अर्थ सत्य है । गौतम ! मैं भी इसी प्रकार आख्यान, भाषण प्रज्ञापन और प्ररूपण करता हूं - गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर महान् ऋद्धि वाला है । भगवान् ने पटरानियों तक की समग्र वक्तव्यता दोहरा दी और अन्त में फिर कहा- यह अर्थ सत्य है । ११. “भन्ते ! वह ऐसा ही है, भन्ते ! वह ऐसा ही है" इस प्रकार तृतीय गौतम वायुभूति अनगार श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन - नमस्कार करते हैं, वन्दन- नमस्कार कर वे जहां द्वितीय गौतम अग्निभूति अनगार हैं, वहां आते हैं, आकर द्वितीय गौतम अग्निभूति अनगार को वन्दन - नमस्कार करते हैं, वन्दन- नमस्कार कर वे इस अर्थ (उनकी यथार्थ वाणी पर अविश्वास किया) के लिए सम्यक् प्रकार से विनयपूर्वक बार-बार क्षमा याचना करते हैं । १२. वे तृतीय गौतम वायुभूति अनगार द्वितीय गौतम अग्निभूति अनगार के साथ जहां श्रमण भगवान् महावीर थे, वहां आये यावत् पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले—भन्ते ! यदि असुरेन्द्र असुरराज चमर इतनी महान् ऋद्धि वाला है यावत् इतनी विक्रिया करने में समर्थ है तो भन्ते ! वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि कितनी महान् ऋद्धि वाला है यावत् कितनी विक्रिया करने में समर्थ है ? गौतम ! वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि महान् ऋद्धि वाला है यावत् महान् सामर्थ्य वाला है । जैसी चमर की वक्तव्यता है वैसी ही बलि की है। केवल इतना अन्तर है कि यहां कुछ अधिक जम्बूद्वीप द्वीप वक्तव्य है । शेष समूचा प्रकरण उसी प्रकार है। एक और अन्तर ज्ञातव्य है - भवन तीस लाख और सामानिक देवों की संख्या साठ लाख I १३. " भन्ते ! वह ऐसा है, भन्ते ! वह ऐसा ही है" इस प्रकार तृतीय गौतम वायुभूति अनगार श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन - नमस्कार करते हैं, वन्दन - नमस्कार कर न अति निकट न अति दूर, शुश्रूषा और नमस्कार की मुद्रा में उनके सम्मुख सविनय बद्धाञ्जलि होकर पर्युपासना करते हैं। १४. द्वितीय गौतम अग्निभूति अनगार श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन - नमस्कार करते हैं, वन्दन - नमस्कार कर वे इस प्रकार बोले- भन्ते ! यदि वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि इतनी महान् ऋद्धि वाला है यावत् इतनी विक्रिया करने में समर्थ है, तो भन्ते ! नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरण कितनी महान् ऋद्धि वाला है यावत् कितनी विक्रिया करने में समर्थ है ? गौतम ! नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरण महान् ऋद्धि वाला यावत् महान् सामर्थ्य वाला है वह वहां चौवालीस लाख भवनावास, छह हजार सामानिक देव, तेतीस तावत्त्रिंशक देव, चार लोकपाल, छह सपरिवार पटरानियां तीन परिषद्, सात सेनाएं, सात सेनापति, चौबीस हजार आत्मरक्षक-देव तथा अन्य अनेक देवों और देवियों का आधिपत्य करता हुआ रहता है। वह इतनी विक्रिया करने में समर्थ है। जैसे कोई युवक युवती को प्रगाढ़ता से हाथ पकड़ता है यावत् सम्पूर्ण जम्बूद्वीप द्वीप उसी प्रकार यावत् तिरछे लोक के संख्येय द्वीप समुद्रों को अनेक नागकुमार और नागकुमारियों से आकीर्ण करने में समर्थ है । यावत् क्रियात्मक रूप में न तो कभी १०१
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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