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________________ श. ३ : उ. १ : सू. ५-१० । भगवती सूत्र असंख्य द्वीप-समुद्रों को अनेक असुरकुमार देवों और देवियों से आकीर्ण, व्यतिकीर्ण, उपस्तृत, संस्तृत, स्पृष्ट और अवगाढावगाढ करने में समर्थ हैं। गौतम! असुरेन्द्र असुरराज चमर के प्रत्येक सामानिक देव की विक्रिया शक्ति का यह इतना विषय केवल विषय की दृष्टि से प्रतिपादित है। उन देवों ने क्रियात्मक रूप में न तो कभी ऐसी विक्रिया की, न करते हैं और न करेंगे। ६. भन्ते! यदि असुरेन्द्र असुरराज चमर सामानिक देव इतनी महान् ऋद्धि वाले यावत् इतनी विक्रिया करने में समर्थ हैं, तो भन्ते! असुरेन्द्र असुरराज चमर के तावत्रिंशक देव कितनी महान ऋद्धि वाले हैं? जैसे सामानिक देवों की प्रज्ञापना है, वैसा ही तावत्त्रिंशक देवों के विषय में ज्ञातव्य है। लोकपाल का प्रज्ञापन भी वैसा ही है, केवल इतना अन्तर है यहां द्वीप-समुद्र संख्येय कहने चाहिए। ७. भन्ते! यदि असुरेन्द्र असुरराज चमर के लोकपाल इतनी महान् ऋद्धि वाले हैं। यावत् इतनी विक्रिया करने में समर्थ हैं, तो असुरेन्द्र असुरराज चमर की पटरानियां कितनी महान् ऋद्धि वाली यावत् कितनी विक्रिया करने में समर्थ हैं? गौतम! असुरेन्द्र असुरराज चमर की पटरानियां महान् ऋद्धि वाली यावत् महान् सामर्थ्य वाली हैं। वे अपने-अपने भवनों, अपनी-अपनी एक-एक हजार सामानिक देवियों, अपनी-अपनी महत्तरिकाओं (प्रधान देवियों) और अपनी-अपनी परिषदों का आधिपत्य करती हुई यावत् इतनी महान् ऋद्धि वाली हैं। उनका शेष सारा प्रज्ञापन लोकपालों की तरह वक्तव्य है। ८. "भन्ते! वह ऐसा ही है, भन्ते! वह ऐसा ही है," इस प्रकार भगवान् द्वितीय गौतम अग्निभूति श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन नमस्कार करते हैं। वंदन-नमस्कार कर जहां तीसरे गौतम वायुभूति अनगार हैं, वहां आते हैं। वहां आकर तीसरे गौतम वायुभूति अनगार से इस प्रकार कहते हैं गौतम! इस प्रकार असुरेन्द्र असुरराज चमर इतनी महान ऋद्धि वाला है-यहां से लेकर पटरानियों की वक्तव्यता समाप्त होती है, वहां तक का समग्र विषय अग्निभूति ने बिना पूछे ही वायुभूति को बतला दिया। ९. तीसरे गौतम वायुभूति अनगार दूसरे गौतम अग्निभूति अनगार के ऐसे आख्यान, भाषण, प्रज्ञापन और प्ररूपण पर न श्रद्धा करते हैं, न प्रतीति करते हैं और न रुचि करते हैं। वह इस तथ्य पर अश्रद्धा, अप्रतीति और अरुचि करते हुए उठने की मुद्रा में उठते हैं, उठ कर जहां श्रमण भगवान् महावीर हैं, वहां आते हैं, यावत् पर्युपासना करते हुए वे इस प्रकार बोले-भन्ते! दूसरे गौतम अग्निभूति अनगार मेरे सामने इस प्रकार आख्यान, भाषण, प्रज्ञापन और प्ररूपण करते हैं-गौतम! असुरेन्द्र असुरराज चमर महान् ऋद्धि वाला है यावत् महान सामर्थ्य वाला है। वह वहां पर चौंतीस लाख भवनावासों का आधिपत्य करता है। पटरानियों की वक्तव्यता समाप्त होती है, वहां तक का समग्र वक्तव्य यहां जानना चाहिए। १०. भन्ते! यह कैसे है? गौतम! इस सम्बोधन से सम्बोधित कर श्रमण भगवान् महावीर ने तृतीय गौतम वायुभूति १००
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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