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________________ भगवती सूत्र श. २ : उ. १ : सू. ५९-६२ पारण, पूरण, कीर्तन, अनुपालन और आज्ञा से आराधना कर जहां श्रमण भगवान् महावीर हैं वहां आता है, आकर श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन-नमस्कार करता है, वन्दन-नमस्कार कर इस प्रकार बोलता है-भन्ते! मैं आपकी अनुज्ञा पाकर द्विमासिकी भिक्षुप्रतिमा की उपसम्पदा को स्वीकार कर विहार करना चाहता हूं। देवानुप्रिय! जैसे तुम्हें सुख हो, प्रतिबन्ध मत करो। वह द्विमासिकी प्रतिमा की उपसम्पदा को स्वीकार कर उसकी आज्ञा-पूर्वक आराधना करता है। ६०. इसी प्रकार त्रैमासिकी, चातुर्मासिकी, पांचमासिकी, पाण्मासिकी, साप्तमासिकी, प्रथम सात रात-दिन की, द्वितीय सात रात-दिन की, तृतीय सात रात-दिन की, एक रात-दिन की और एक रात की प्रतिमा स्वीकार करता है, स्वीकार कर उसकी आज्ञा-पूर्वक आराधना करता है। ६१. वह स्कन्दक अनगार एक रात की भिक्षुप्रतिमा की यथासूत्र यावत् आराधना कर जहां भगवान् महावीर हैं, वहां आता है, आकर श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन-नमस्कार करता है, वन्दन-नमस्कार कर वह इस प्रकार बोला-भन्ते! मैं आपकी अनुज्ञा पाकर गुणरत्न-संवत्सर तपःकर्म की उपसम्पदा स्वीकार कर विहार करना चाहता हूं। देवानुप्रिय! जैसे तुम्हें सुख हो, प्रतिबंध मत करो। ६२. वह स्कन्दक अनगार श्रमण भगवान् महावीर की अनुज्ञा प्राप्तकर हृष्टतुष्ट चित्त वाला हुआ यावत् नमस्कार कर गुणरत्न-संवत्सर तपःकर्म की उपसम्पदा स्वीकार कर विहार करता है, जैसेप्रथम मास में बिना विराम (एकान्तर) चतुर्थ-चतुर्थभक्त (एक-एक दिन का उपवास) तपःकर्म करता है, दिन में स्थान कायोत्सर्ग-मुद्रा और उकडू आसन में बैठ सूर्य के सामने मुंह कर आतापन-भूमि में आतापना लेता है और रात्रि में विरासन मैं बैठता है, निर्वस्त्र रहता है। दूसरे मास में बिना विराम षष्ठ-षष्ठभक्त (दो-दो दिन का उपवास) तपःकर्म करता है। दिन में स्थान कायोत्सर्ग-मुद्रा और उकडू आसन में बैठ सूर्य के सामने मुंह कर आतापन-भूमि में आतापना लेता है और रात्रि में विरासन में बैठता है, निर्वस्त्र रहता है। इसी प्रकार तीसरी मास में अष्टम-अष्टमभक्त (तीन-तीन दिन का उपवास), चौथे मास में दशम-दशमभक्त (चार -चार दिन का उपवास), पांचवें मास में द्वादश-द्वादशभक्त (पांच-पांच दिन का उपवास) छठे मास में चतुर्दश-चतुर्दशभक्त (छह -छह दिन का उपवास), सातवें मास में षोडश-षोडशभक्त (सात-सात दिन का उपवास), आठवें मास में अष्टदश-अष्टदश (आठ-आठ दिन का उपवास), नवें मास में बीसवां-बीसवांभक्त (नव-नव दिन का उपवास), दसवें मास में बाईसवां-बाईसवांभक्त (दश -दश दिन का उपवास), ग्यारहवें मास में चौबीसवां-चौबीसवांभक्त (ग्यारह-ग्यारह दिन का उपवास), बारहवें मास में छबीसवांछबीसवांभक्त (बारह -बारह दिन का उपवास), तेरहवें मास में अठाईसवां-अठाईसवांभक्त (तेरह -तेरह दिन का उपवास), चौदहवें मास में तीसवां-तीसवांभक्त (चौदह -चौदह दिन का उपवास), पन्द्रहवें मास में बत्तीसवां-बत्तीसवांभक्त (पन्द्रह-पन्द्रह दिन का उपवास) और ७७
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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