SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श. २ : उ. १ : सू. १२-१५ भगवती सूत्र करता है, स्यात् अशरीर निष्क्रमण करता है। मृतादी-निर्ग्रन्थ-पद १३. भन्ते! याचितभोजी निर्ग्रन्थ, जिसने भव का निरोध नहीं किया है और भव के विस्तार का निरोध नहीं किया है, जिसने संसार को प्रहीण नहीं किया है और संसार-वेदनीय-कर्म को भी प्रहीण नहीं किया है, जिसने संसार को व्युच्छिन्न नहीं किया है और संसार-वेदनीय-कर्म को भी व्युच्छिन्न नहीं किया है, जिसने अपना प्रयोजन सिद्ध नहीं किया है और प्रयोजन-पूर्ति के लिए करणीय कार्यों को भी सिद्ध नहीं किया है, क्या फिर से इत्थंस्थ (तिर्यञ्च आदि के रूपों) को प्राप्त होता है? हां, गौतम! याचितभोजी निर्ग्रन्थ, जिसने भव का निरोध नहीं किया है और भव के विस्तार का निरोध नहीं किया है, जिसने संसार को प्रहीण नहीं किया है और संसार-वेदनीय-कर्म को भी प्रहीण नहीं किया है, जिसने संसार को व्युच्छिन्न नहीं किया है और संसार-वेदनीय-कर्म को भी व्युच्छिन्न नहीं किया है, जिसने अपना प्रयोजन सिद्ध नहीं किया है और प्रयोजन-पूर्ति के लिए करणीय कार्यों को भी सिद्ध नहीं किया है, फिर से इत्थंस्थ (तिर्यञ्च आदि के रूपों) को प्राप्त होता है। १४. भन्ते! वह किस शब्द के द्वारा वाच्य होता है? गौतम! वह प्राण शब्द के द्वारा वाच्य होता है। वह भूत शब्द के द्वारा वाच्य होता है। वह जीव शब्द के द्वारा वाच्य होता है। वह सत्त्व शब्द के द्वारा वाच्य होता है। वह विज्ञ शब्द के द्वारा वाच्य होता है। वह वेद शब्द के द्वारा वाच्य होता है। वह प्राण, भूत, जीव, सत्त्व, विज्ञ और वेद इस रूप में वाच्य होता है। १५. भंते! वह किस अपेक्षा से प्राण शब्द के द्वारा वाच्य होता है यावत् 'वेद' शब्द के द्वारा वाच्य होता है? गौतम! क्योंकि वह आन, अपान तथा उच्छ्वास और निःश्वास करता है, इसलिए वह 'प्राण' शब्द के द्वारा वाच्य होता है। क्योंकि वह था, है और होगा, इसलिए वह 'भूत' शब्द के द्वारा वाच्य होता है। क्योंकि जीव जीता है-प्राण धारण करता है, जीवत्व और आयुष्य-कर्म का अनुभव करता है, इसलिए वह 'जीव' शब्द के द्वारा वाच्य होता है। क्योंकि वह शुभ- और अशुभ-कर्मों के द्वारा विषादयुक्त बनता है, इसलिए वह 'सत्त्व' शब्द के द्वारा वाच्य होता है। क्योंकि वह तिक्त, कटु, कसैले, अम्ल और मधुर रसों को जानता है, इसलिए वह 'विज्ञ' शब्द के द्वारा वाच्य होता है। क्योंकि वह सुख-दुःख का वेदन करता है, इसलिए वह 'वेद' शब्द के द्वारा वाच्य होता है। इस अपेक्षा से वह 'प्राण' शब्द के द्वारा वाच्य होता है यावत् 'वेद' शब्द के द्वारा वाच्य होता ६६
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy