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________________ भगवती सूत्र श. २ : उ. १ : सू. ४-१२ गौतम! स्थान-मार्गणा को अपेक्षा से वे एक-वर्ण-यावत् पांच-वर्ण-युक्त पुद्गल-द्रव्यों का आन, अपान तथा उच्छ्वास और निःश्वास करते हैं। विधान-मार्गणा की अपेक्षा से वे कृष्णवर्ण-यावत् शुक्ल-वर्ण-युक्त पुद्गल द्रव्यों का आन, अपान तथा उच्छ्वास और निःश्वास करते हैं। यहां आहार का गमक (पण्णवणा, २८।७-१८) वक्तव्य है यावत्५. भन्ते! ये जीव कितनी दिशाओं में आन, अपान तथा उच्छ्वास और निःश्वास करते हैं? गौतम! व्याघात न हो तो छहों दिशाओं में और व्याघात की अपेक्षा से कदाचित् तीन दिशाओं, कदाचित् चार दिशाओं और कदाचित् पांच दिशाओं में आन, अपान तथा उच्छ्वास और निःश्वास करते हैं। ६. भन्ते! नैरयिक जीव किसका आन, अपान तथा उच्छ्वास और निःश्वास करते हैं? यह एकेन्द्रिय-जीवों की भांति (सू. ३,४) वक्तव्य है, यावत् नैरयिक नियमतः छहों दिशाओं में आन, अपान तथा उच्छ्वास और निःश्वास करते हैं। ७. सामान्य जीव और एकेन्द्रिय जीवों के व्याघात और निर्व्याघात का विकल्प वक्तव्य है। शेष सब जीव नियमतः छहों दिशाओं में आन, अपान तथा उच्छ्वास और निःश्वास करते ८. भंते! वायुकायिक-जीव क्या वायुकाय का ही आन, अपान तथा उच्छ्वास और निःश्वास करते हैं? हां, गौतम! वायुकायिक-जीव वायुकाय का ही आन, अपान तथा उच्छ्वास और निःश्वास करते हैं। वायुकाय की कायस्थिति-पद ९. भंते! क्या वायुकायिक-जीव वायुकाय में ही अनेक लाख बार मर-मर कर वहीं पुनः-पुनः उत्पन्न होता है? हां, गौतम ! वायुकायिक-जीव वायुकाय में ही अनेक लाख बार मर-मर कर वहीं पुनः पुनः . उत्पन्न होता है। १०. भन्ते! क्या वायुकायिक-जीव स्पृष्ट होकर मरता है? अथवा अस्पृष्ट रहकर मरता है? गौतम! वह स्पृष्ट होकर मरता है, अस्पृष्ट रहकर नहीं मरता। ११. भन्ते! क्या वायुकायिक-जीव सशरीर निष्क्रमण करता है? अथवा अशरीर निष्क्रमण करता है। गौतम! वह स्यात् सशरीर निष्क्रमण करता है, स्यात् अशरीर निष्क्रमण करता है। १२. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है वायुकायिक-जीव स्यात् सशरीर निष्क्रमण करता है, स्यात् अशरीर निष्क्रमण करता है? गौतम! वायुकायिक-जीव के चार शरीर प्रज्ञप्त हैं, जैसे औदारिक, वैक्रिय, तैजस और कार्मण। वह औदारिक- और वैक्रिय-शरीर को छोड़कर तैजस- और कार्मण-शरीर के साथ निष्क्रमण करता है। गौतम! इस अपेक्षा ये यह कहा जा रहा है वह स्यात् सशरीर निष्क्रमण
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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