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________________ दूसरा शतक पहला उद्देशक संग्रहणी गाथा दूसरे शतक में दस उद्देशक हैं-१. उच्छ्वास-निःश्वास और स्कन्ध २. समुद्घात ३. पृथ्वी ४. इन्द्रियां ५. अन्ययूथिक ६. भाषा ७. देव ८. चमरचञ्चा ९. समयक्षेत्र १०. अस्तिकाय। उत्क्षेप-पद १. उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था-नगर-वर्णन। वहां भगवान् महावीर आए। परिषद् ने नगर से निगमन किया। भगवान् ने धर्म कहा। परिषद् वापिस नगर में चली गई। श्वासोच्छ्वास-पद २. उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी इन्द्रभूति अनगार यावत् भगवान् की पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोलेभन्ते! ये जो द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय जीव हैं, इनके आन, अपान तथा उच्छ्वास और निःश्वास को हम जानते हैं, देखते हैं। ये जो पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय जीव हैं, इनके आन, अपान तथा उच्छ्वास और निःश्वास को हम न जानते हैं और न देखते भन्ते! क्या ये जीव आन, अपान तथा उच्छ्वास और निःश्वास करते हैं? हां, गौतम ! ये जीव भी आन, अपान तथा उच्छ्वास और निःश्वास करते हैं। ३. भन्ते! ये जीव किसका आन, अपान तथा उच्छ्वास और निःश्वास करते हैं? गौतम! ये जीव द्रव्य की अपेक्षा से अनन्त-प्रदेशी, क्षेत्र की अपेक्षा से असंख्येयप्रदेशावगाढ, काल की अपेक्षा से किसी भी स्थिति वाले और भाव की अपेक्षा से वर्ण-गन्धरस- तथा स्पर्श-युक्त पुद्गल-द्रव्यों का आन, अपान तथा उच्छ्वास और निःश्वास करते हैं। ४. वे भाव की अपेक्षा से जिन वर्ण-युक्त पुद्गल-द्रव्यों का आन, अपान तथा उच्छ्वास और निःश्वास करते हैं, क्या उन एक वर्ण यावत् पांच वर्ण-युक्त पुद्गल-द्रव्यों का आन, अपान तथा उच्छ्वास और निःश्वास करते हैं? ६४
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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