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________________ भगवती सूत्र विग्रहगति-पद ३३५. भन्ते ! क्या जीव विग्रह-गति (अन्तराल - गति ) - समापन्न होता है ? अथवा अविग्रहगति (उत्पत्ति-स्थान को प्राप्त ) - समापन्न होता है ? गौतम! वह स्यात् विग्रह - गति - समापन्न होता है और स्यात् अविग्रह- गति - समापन्न होता है। ३३६. इसी प्रकार वैमानिक तक ज्ञातव्य है । ३३७. भन्ते ! क्या जीव विग्रह-गति समापन होते हैं ? अथवा अविग्रह गति समापन्न होते हैं? गौतम ! जीव विग्रह-गति - समापन भी होते हैं, अविग्रह - गति - समापन भी होते हैं । ३३८. भन्ते ! क्या नैरयिक विग्रह गति - समापन्न होते हैं ? अथवा अविग्रह-गति - समापन्न होते हैं ? श. १ : उ. ७ : सू. ३३५-३४१ - गौतम! सभी नैरयिक अविग्रह - गति - समापन होते हैं । अथवा वे अविग्रह - गति समापन होते हैं, कोई एक विग्रह-गति समापन्न होता है । अथवा कुछ अविग्रह-गति - समापन्न होते हैं, कुछ विग्रह - गति - समापन्न होते हैं। इस प्रकार जीव (निर्विशेषण जीव) और एकेन्द्रिय को छोड़कर सबके तीन भंग होते हैं। आयु-पद ३३९. भन्ते! महान् ऋद्धि और महान् द्युति से सम्पन्न, महाबली, महान् यशस्वी, महान् ऐश्वर्यशाली के रूप में प्रख्यात, महान् सामर्थ्यवाला देव अच्युत किन्तु च्यवमान अवस्था में कुछ समय आहार नहीं लेता। उसके तीन हेतु हैं - लज्जा, जुगप्सा और परीषह । कुछ समय पश्चात् वह आहार लेता है, तब आह्रियमाण आहृत और परिणम्यमान परिणत होता है । (अंत में) उस देव का आयुष्य क्षीण हो जाता है । उसे जहां उत्पन्न होना है, उस आयुष्य का प्रतिसंवेदन प्रारम्भ हो जाता है, जैसे-तिर्यग्योनिक का आयुष्य अथवा मनुष्य का आयुष्य ? हां, गौतम ! महान् ऋद्धि और महान् द्युति से सम्पन्न, महाबली, महान् ऐश्वर्यशाली, महान् सामर्थ्यवाला देव अच्युत किन्तु च्यवमान अवस्था में कुछ समय आहार नहीं लेता। उसे तीन हेतु हैं- लज्जा, जुगुप्सा और परीषह । कुछ समय पश्चात् वह आहार लेता है, तब आह्रियमाण आहृत और परिणम्यमान परिणत होता है । ( अन्त में) उस देव का आयुष्य क्षीण हो जाता है। उसे जहां उत्पन्न होना है, उस आयुष्य का प्रतिसंवेदन प्राम्भ हो जाता है, जैसे - तिर्यग्योनिक का आयुष्य अथवा मनुष्य का आयुष्य । गर्भ-पद ३४०. भन्ते! गर्भ में उत्पन्न होता हुआ जीव क्या स- इन्द्रिय उत्पन्न होता है ? अथवा अनिन्द्रिय उत्पन्न होता है ? गौतम! वह स्यात् स - इन्द्रिय उत्पन्न होता है । स्यात् अनिन्द्रिय उत्पन्न होता है । ३४१. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है वह स्यात् स - इन्द्रिय उत्पन्न होता है ? स्यात् अनिन्द्रिय उत्पन्न होता है ? गौतम ! द्रव्येन्द्रिय की अपेक्षा से वह अनिन्द्रिय उत्पन्न होता है । भावेन्द्रिय की अपेक्षा से स ४३
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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