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________________ भगवती सूत्र श. १ : उ. ७ : सू. ३४१-३४९ इन्द्रिय उत्पन्न होता है, गौतम इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है - जीव स्यात् स - इन्द्रिय उत्पन्न होता है, स्यात् अनिन्द्रिय उत्पन्न होता है । ३४२. भन्ते! गर्भ में उत्पन्न होता हुआ जीव क्या सशरीर उत्पन्न होता है ? अथवा अशरीर उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह स्यात् सशरीर उत्पन्न होता है । स्यात् अशरीर उत्पन्न होता है। ३४३. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - वह स्यात् सशरीर उत्पन्न होता है ? स्यात् अशरीर उत्पन्न होता है ? गौतम ! औदारिक, वैक्रिय और आहारक- शरीर की अपेक्षा वह अशरीर उत्पन्न होता है । तेजस - और कार्मण - शरीर की अपेक्षा से वह सशरीर उत्पन्न होता है। गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है—जीव स्यात् सशरीर उत्पन्न होता है, स्यात् अशरीर उत्पन्न होता है । ३४४. भन्ते! जीव गर्भ में उत्पन्न होता हुआ सबसे पहले क्या आहार लेता है ? गौतम! जीव सबसे पहले माता का ओज और पिता का शुक्र- इन दोनों से मिश्रित आहार लेता है । ३४५. भन्ते ! गर्भ - गत जीव क्या आहार लेता है ? गौतम ! गर्भ-गत जीव की माता जो नाना प्रकार की रस - विकृतियों का आहार लेती है, उसके एक देश के साथ ओज का आहार लेता है । ३४६. भन्ते! क्या गर्भ-गत जीव के मल, मूत्र, श्लेष्म, सिङ्घाण (नाक का मल) घमन और पित्त होता है ? यह अर्थ संगत नहीं है। ३४७. यह किस अपेक्षा से ? गौतम! गर्भ-गत जीव जो आहार लेता है, उसका वह श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, स्पर्शनेन्द्रिय, अस्थि, अस्थि-मज्जा, केश, श्मश्रु, रोम और नख के रूप में चय करता है । गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है - गर्भ-गत जीव के मल, मूत्र, श्लेश्म, सिंघाण, वमन और पित्त नहीं होता । ३४८. भन्ते ! क्या गर्भ-गत जीव मुख से कवल - आहार करने में सक्षम है ? गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं है । ३४९. यह किस अपेक्षा से ? गौतम ! गर्भ-गत जीव समग्र शरीर से आहार लेता है, समग्र शरीर से परिणत करता है, समग्र शरीर से उच्छ्वास लेता है और समग्र शरीर से निःश्वास करता है; वह बार-बार आहार लेता है, बार-बार परिणत करता है, बार-बार उच्छ्वास लेता है और बार-बार निःश्वास करता है; कदाचित् आहार लेता है, कदाचित् परिणत करता है, कदाचित् उच्छ्वास लेता है और कदाचित् निःश्वास करता है । ४४
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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