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________________ भगवती सूत्र श. १ : उ. ५, ६ : सू. २५१-२५८ २५१. जिन स्थानों में नैरयिकों के अस्सी भंग हैं, उन स्थानों में द्वीन्द्रिय-, त्रीन्द्रिय- और चतुरिन्द्रिय-जीवों के भी अस्सी भंग होते हैं। विशेष ज्ञातव्य है कि सम्यक्त्व, आभिनिबोधिक ज्ञान और श्रुत ज्ञान इनमें अधिक भंग - अस्सी भंग होते हैं। जिन स्थानों में नैरयिकों के सत्ताईस भंग होते हैं, विकलेन्द्रिय जीवों के वे सब स्थान भंग - शून्य होते हैं। २५२. पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक जीव नैरयिकों की भांति वक्तव्य हैं, विशेष ज्ञातव्य है कि जहां नैरयिकों के सत्ताईस भंग होते हैं, वहां वे भंग- शून्य होते हैं । इसलिए इनका कोई भंग नहीं बनता । २५३. मनुष्य भी दस द्वार से वक्तव्य हैं, जिन स्थानों में नैरयिकों के अस्सी भंग होते हैं, उन स्थानों में मनुष्यों के भी अस्सी भंग वक्तव्य हैं। जिन स्थानों में नैरयिकों के सत्ताईस भंग होते हैं, उनमें मनुष्य भंग- शून्य होते हैं, विशेष ज्ञातव्य है कि मनुष्यों के जघन्य स्थिति और आहारक- शरीर में अधिक भंग - अस्सी भंग होते हैं । २५४. वानमंतर -, ज्योतिष्क- और वैमानिक -देव भवनवासी देवों की भांति वक्तव्य हैं, केवल जिसका जो नानात्व है वह ज्ञातव्य है यावत् अनुत्तर विमान तक । २५५. भन्ते ! वह ऐसा ही है, भन्ते वह ऐसा ही है। इस प्रकार भगवान् गौतम यावत् संयम और तप से अपने आपको भावित करते हुए विहरण कर रहे हैं । छठा उद्देश सूर्य-पद २५६. भन्ते ! उगता हुआ सूर्य जितने अवकाशान्तर से दृष्टिगोचर होता है, क्या अस्त होता हुआ सूर्य भी उतने ही अवकाशान्तर से दृष्टिगोचर होता है ? हां, गौतम ! उगता हुआ सूर्य जितने अवकाशान्तर से दृष्टिगोचर होता है, अस्त होता हुआ सूर्य भी उतने ही अवकाशान्तर से दृष्टिगोचर होता है । २५७ भन्ते ! उगता हुआ सूर्य अपने आतप से सब दिशाओं और विदिशाओं में जितने क्षेत्र को अवभासित, उद्द्योतित, तप्त और प्रभासित करता है, क्या अस्त होता हुआ सूर्य भी अपने आतप से सब दिशाओं और विदिशाओं में उतने ही क्षेत्र को अवभासित, उद्द्योतित, तप्त और प्रभासित करता है ? हां, गौतम! उगता हुआ सूर्य अपने आतप से सब दिशाओं और विदिशाओं में जितने क्षेत्र को अवभासित, उद्द्योतित, तप्त और प्रभासित करता है, अस्त होता हुआ सूर्य भी अपने आप से सब दिशाओं और विदिशाओं में उतने ही क्षेत्र को अवभासित, उद्द्योतित, तप्त और प्रभासित करता है । २५८. भन्ते ! क्या सूर्य स्पृष्ट क्षेत्र को अवभासित करता है ? अथवा अस्पृष्ट क्षेत्र को अवभासित करता है ? गौतम ! वह स्पृष्ट- क्षेत्र को अवभासित करता है, अस्पृष्ट क्षेत्र को अवभासित नहीं करता । ३३
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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