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________________ श. १ : उ. ५ : सू. २४१-२५० भगवती सूत्र गौतम! वे साकारोपयुक्त भो होते हैं, अनाकारोपयुक्त भी होते हैं। २४२. भन्ते! इस रत्नप्रभा-पृथ्वी में यावत् साकारोपयोग में वर्तमान नैरयिक क्या क्रोधोपयुक्त होते हैं? सत्ताईस भंग वक्तव्य हैं। २४३. इसी प्रकार अनाकारोपयोग में वर्तमान नैरयिकों के भी सत्ताईस भंग वक्तव्य हैं। २४४. इस प्रकार सातों ही पृथ्वियां ज्ञातव्य हैं, केवल लेश्या में नानात्व है। संग्रहणी गाथा प्रथम और द्वितीय पृथ्वी में कापोत-लेश्या, तीसरी पृथ्वी में मिश्र–कापोत- और नीललेश्या, चौथी पृथ्वी में नील-लेश्या पांचवीं पृथ्वी में मिश्र-नील- और कृष्ण-लेश्या, छठी पृथ्वी में कृष्ण-लेश्या ओर सातवीं पृथ्वी में परम-कृष्ण-लेश्या होती है। असुरकुमार आदि का नाना दशाओं में क्रोधापयुक्त आदि भंग-पद २४५. भन्ते! चौसठ लाख असुरकुमार-आवासों में से प्रत्येक असुरकुमार-वास में रहने वाले असुरकुमारों के कितने स्थिति-स्थान (आयु-विभाग) प्रज्ञप्त हैं? गौतम! उनके असंख्येय स्थिति-स्थान प्रज्ञप्त हैं। उनकी जघन्य स्थिति नैरयिकों के समान हैं। विशेष ज्ञातव्य यह है कि प्रतिलोम भंग (लोभोपयुक्त आदि) वक्तव्य हैं। वे सब असुरकुमार लोभोपयुक्त होते हैं। अथवा लोभोपयुक्त और एक मायोपयुक्त। अथवा लोभोपयुक्त मायोपयुक्त। इस गमक (सदृश पाठ-पद्धति) के अनुसार यावत् स्तनितकुमार-देवों की वक्तव्यता, केवल इनका नानात्व ज्ञातव्य है। २४६. भन्ते! असंख्येय लाख पृथ्वीकायिक आवासों में से प्रत्येक पृथ्वीकायिक आवास में रहने वाले पृथ्वीकायिक-जीवों के कितने स्थिति-स्थान प्रज्ञप्त हैं? गौतम! उनके असंख्येय स्थिति-स्थान प्रज्ञप्त हैं, जैसे-जघन्य स्थिति से लेकर यावत् विवक्षित पृथ्वीकायिक आवास के प्रायोग्य उत्कृष्ट स्थिति। २४७. भन्ते! असंख्येय लाख पृथ्वीकायिक आवासों में से प्रत्येक पृथ्वीकायिक आवास में जघन्य स्थिति में वर्तमान पृथ्वीकायिक-जीव क्या क्रोधोपयुक्त होते हैं? मानोपयुक्त होते हैं? मायोपयुक्त होते हैं? लोभोपयुक्त होते हैं? गौतम! क्रोधोपयुक्त भी होते हैं, मानोपयुक्त भी होते हैं, मायोपयुक्त भी होते हैं, लोभोपयुक्त भी होते हैं। इस प्रकार पृथ्वीकायिक-जीवों के सभी स्थान भंग-शून्य होते हैं, केवल तेजो-लेश्या में वर्तमान पृथ्वीकायिक जीवों के अस्सी भंग वक्तव्य हैं। २४८. इसी प्रकार अप्कायिक जीव ज्ञातव्य हैं। २४९. तैजसकायिक और वायुकायिक जीवों के सभी स्थान भंग-शून्य होते हैं। २५०. वनस्पतिकायिक जीवों की वक्तव्यता पथ्वीकायिक जीवों के समान हैं। ३२
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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