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जैनधर्म की कहानियाँ भाग - 23
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ने दीपक द्वारा मार्ग दर्शन किया, नगर के द्वार अपने आप खुल गये और यमुना नदी का प्रवाह भी अपने आप थम गया । नदी ने दो भागों में विभाजित होकर उस पार जाने का मार्ग बना दिया ।
अरे ! पुण्य का प्रभाव संसार में तो सर्वप्रकार से सहायता करता है, अपने चमत्कार दिखाता है; परन्तु मोक्ष प्राप्त कराने की उसमें रंचमात्र भी सामर्थ्य नहीं है और क्षणिक होने से नियम से नष्ट भी होता है तब जीव को नियम से नरकादि गतियों में ही जाना पड़ता है । इसलिये मोक्षार्थी जीव उस पुण्य की शरण नहीं लेते ।
श्रीकृष्ण को लेकर जब वसुराज और बलभद्र गोकुल जा रहे थे, तब नन्दगोप एक मृतपुत्री को लेकर मार्ग में आते हुए मिले। बलभद्र ने बालकृष्ण को उन्हें सौंप दिया और मृतपुत्री को लेकर ऐसा प्रचारित किया कि देवकी ने मृतपुत्री को जन्म दिया है । इसप्रकार राजा कंस को भी श्रीकृष्ण के जन्म की खबर नहीं हुई । इधर नन्दगोप की पत्नी यशोदा अत्यन्त स्नेहपूर्वक उनका लालन-पालन करने लगीं। कृष्ण ज्यों-ज्यों बड़े हो रहे थे, त्यों-त्यों मथुरा में उपद्रव बढ़ रहे थे। इसी से अनुमान लगाकर ज्योतिषियों ने राजा कंस को कहा कि 'आपका महान शत्रु कहीं उत्पन्न हो चुका है।
यह सुनकर कंस चिंता में पड़ गया, उसने शत्रु को ढूँढ़ने और मारने के अनेक उपाय किये; परन्तु श्रीकृष्ण के पुण्य योग से उनका कोई कुछ नहीं कर सका। अंत में एक मल्लयुद्ध में छोटे से श्रीकृष्ण ने बड़े विशाल कंस का संहार कर दिया । कंस के पिता उग्रसेन को कारागृह से मुक्त करके उन्हें मथुरा का राज्य सौंप दिया और श्रीकृष्ण ने परिवार सहित आनंदपूर्वक शौरीपुर में प्रवेश किया ।
असंतुष्ट व्यक्ति प्राप्त अवसर एवं सामग्री का भी सदुपयोग नहीं कर पाता। उसकी वृत्ति पागल कुत्ते की भाँति हो जाती है जिसे एक क्षण भी न चैन है और स्थिरता । ब्र. रवीन्द्रजी 'आत्मन् '