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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-23
नमो नमो हमारा है विश्व की विभूति को विनश्वर विचारि जिन,
देह गेह सों सनेह त्यागि तप धारा है। धाराधर सम पाप पुंज को प्रभंजन है,
करम करिन्द को मृगिन्द बनि मारा है। काम क्रोध मोह मद लोभ क्षोभ मान छल,
सकल उपाधि को समाधि से बिडारा है। .. पाय बोध केवल सुबोधि दिये जग जन, ऐसे जिनदेव को नमो नमो हमारा है।
- भव्यप्रमोद से साभार
साहित्य प्रकाशन फण्ड १००१/- किंजल बेन कुनाल दादर ह. पुष्पा बेन १००१/- प्रेमीला बेन, तेजपुर ७५१/- सौ. बीणा बेन सुरेश भाई संघवी, अहमदावाद ५५१/- कु. हर्षा के दीक्षा ह.श्रीमती सुवाबाई ह.रवीन्द्र कोचर कटंगी ४००/- सौ. मालती बेन जगदीश भाई संघवी, अहमदावाद २५१/- श्री प्रेमचन्द जैन अभय जैन, ह.चंद्रकला श्रुति जैन खैरागढ़ २५१/- कु. निधि, निश्चल जैन ह. श्रीमती सरला जैन, खैरागढ़ २५१/- झनकारीबाई खेमराज बाफना चे. ट्रस्ट, खैरागढ़ . २५१/- ब्र. ताराबेन मैनाबेन, सोनगढ़ २५१/- श्रीमती मनोरमा जैन विनोद कुमार जैन, जयपुर २०१/- श्री दुलीचन्द कमलेश कुमार ह. कंचनबाई रजनी जैन, खैरागढ़ २०१/- ढेलाबाई चे. ट्रस्ट, खैरागढ़ सौ. शोभादेवी मोतीलाल जैन, खैरागढ़ २०१/- श्री रमेशचन्द साकेत जैन शास्त्री, जयपुर १०१/- श्री सुरभि आदित्य जैन, खैरागढ़