SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 18 ... जैनधर्म की कहानियाँ भाग-23 श्रीकृष्ण का जन्म-देवकी के तीन बार युगल-पुत्र (नृपदत्तदेवपाल, अनीकदत्त-अनीकपाल, शत्रुघ्न-जितशत्रु) हुए। पुण्य प्रभाव से उन चरम शरीरी पुत्रों की एक देव ने रक्षा की और उनके स्थान पर दूसरे मृतपुत्र रख दिये। कंस ने समझा कि देवकी के पुत्र तो मरे हुए ही जन्मे हैं। तथापि दुष्ट भाव के कारण उसने उन नवजात शिशुओं को पत्थर पर पछाड़कर उनका मस्तक फोड़ दिया। रे संसार ! देखो तो सही, बैरभाव की पराकाष्ठा; परन्तु जिनका पुण्य जीवित हो उन्हें कौन मार सकता है? उन छह पुत्रों के पश्चात् देवकी को सातवें पुत्र का गर्भधारण हुआ। इस बार निर्नामक मुनि का जीव देवकी के गर्भ में आया और देवकी ने सातवें महीने में ही पुत्र को जन्म दे दिया। जो जगत में श्रीकृष्ण के नाम से प्रसिद्ध हुआ। SMS : । E मथुरा में श्रीकृष्ण का जन्म होते ही उनके पिता वसुराज तथा ज्येष्ठ कुमार (रोहिणी पुत्र) बलदेव उन्हें गुप्त रूप से गोकुल में नन्दगोप के घर ले गये। मार्ग के अँधेरे में श्रीकृष्ण के पुण्य प्रताप से एक देव
SR No.032272
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy