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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग - 23 53 9 विद्युच्चर राजकुमार के परिणामों की विचित्रता मगधदेश में हस्तिनापुर नाम का महानगर है, वहाँ का राजा संवर एवं उसकी प्रियवादिनी श्रीषेणा नाम की रानी थी। उनका विद्युच्चर नाम का पुत्र था । विद्युच्चर जैसे-जैसे कुमार अवस्था को प्राप्त होता गया, वैसे-वैसे उसने बुद्धि की तीक्ष्णता के कारण अस्त्र-शस्त्र आदि अनेक विद्याएँ शीघ्र ही सीख लीं। एक दिन उसको पापोदय से खोटी बुद्धि उत्पन्न हुई । वह सोचने लगा - " मैंने सब कलायें सीखीं, परन्तु चौर्यकला नहीं सीखी। उसका भी मुझे अभ्यास अवश्य करना चाहिए ।" ऐसा विचार कर उसने एक रात्रि में अपने ही पिता के महल में धीरे-धीरे चोर की तरह जाकर बहुमूल्य रत्न चुराये । वे रत्न अति ही प्रकाशमान थे। जब वह रत्न चुराकर लौट रहा था, तब राज्य कर्मचारियों ने उसे देख लिया। सुबह होते ही उन्होंने कुमार के द्वारा की गई चोरी का वृतान्त राजा से कह दिया। चोरी की बात सुनते ही राजा ने कर्मचारियों को आज्ञा दी कि शीघ्र ही कुमार को यहाँ लाया जाए। कर्मचारियों के कहने पर कुमार शीघ्र ही आकर वीर सुभट के समान निर्भीकता से पिता के समक्ष खड़ा हो गया । राजा ने उसे अपने मृदु वचनों से समझाया - " बेटे ! यह चोरी करना तूने कहाँ से सीख ली ? और चोरी तूने क्यों की ? इस राज्य में समस्त मनवांछित सामग्री उपलब्ध है। उसका भोग - उपभोग तुम अपनी मर्जी से खूब करो। तुम्हें कोई रोक-टोक तो है नहीं और फिर ये राज्य-वैभव तुम्हारे लिए ही तो है। अन्यत्र प्राप्त न होने वाली समस्त
SR No.032272
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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