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________________ ५२ आप्तवाणी-५ दादाश्री : हाँ, उससे फायदा होता है। उससे वे दूर रहते हैं। यह नवकारमंत्र भी यदि पद्धतिपूर्वक बोले तो भी वे हट जाएँगे। प्रश्नकर्ता : हमें देवलोक दिखाइए न? दादाश्री : उससे क्या फायदा? आप अपने आत्मा का कर लो न? वह देखने में मज़ा नहीं है। अनंत जन्मों से भटक रहे हैं। वहाँ भी जाकर आए हैं और यहाँ भी आए हैं। उसमें क्या देखना? देव-देवियों के पास इन्द्रियसुख अपार होते हैं। उससे वे लोग भी ऊब गए हैं। वे लोग भी राह देखते रहते हैं कि कब उनकी देह छूटे। लाख-लाख वर्षों का उनका आयुष्य होता है तो किस तरह से देह छूटे? आपको यहाँ एक महीना विवाह के समारोह में रखें और रोज़ पकवान दें तो वह आपको ठीक लगेगा क्या? आप वहाँ से भाग जाओगे न? वैसे ही देवी-देवताओं को भी वहाँ पर अच्छा नहीं लगता। सिद्धात्मा और सिद्धपुरुष प्रश्नकर्ता : जो सिद्धपुरुष होते हैं उनका एक खास सर्कल होता है। वे पृथ्वी पर हों या नज़दीक के ग्रह पर हों तो वे पृथ्वी के लोगों को मार्गदर्शन देते हैं, यह बात सही है क्या? दादाश्री : सिद्ध मार्गदर्शन नहीं देते। मार्गदर्शन देनेवाले संसारी हैं। उन्हें संसारी सिद्ध कहा जाता है-लौकिक भाषा में। प्रश्नकर्ता : उन्हें कुछ भी नहीं करना होता? दादाश्री : सिद्ध तो संपूर्ण भगवान बन चुके होते हैं, वे हैं। वे यहाँ पर नहीं होते हैं। यहाँ पर देहधारी रूप में कोई सिद्ध होते नहीं हैं। यह जो सिद्धों की बात है, वह तो लौकिक बात है। प्रश्नकर्ता : सिद्ध लोगों का भी संसार है न? दादाश्री : उनका सिद्धक्षेत्र है। वे यहाँ पर कभी भी होते ही नहीं। प्रश्नकर्ता : वे सिद्ध देहधारी नहीं होते?
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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