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आप्तवाणी-५
दादाश्री : समाधि मरण में खुद को किसी प्रकार का दुःख ही नहीं होता। अंतिम एक घंटे में समाधि ही रहती है। अपने यहाँ 'ज्ञान' लेकर जितने लोग अभी तक मरे हैं, उनके समाधिमरण हुए हैं, प्रमाण सहित।
प्रश्नकर्ता : अंतिम घंटे में यदि रौद्रध्यान हो तो मनुष्य सबकुछ चूक जाता है?
दादाश्री : तब तो फिर सब खत्म हो गया कहा जाएगा। रौद्रध्यान तो क्या, परन्तु आर्तध्यान हो तब भी खत्म हो गया। 'मेरी पाँचवी बेटी का विवाह करना रह गया' ऐसा हो तो वह आर्तध्यान हुआ कहलाएगा। उससे जानवर योनि में जाता है।
प्रेतयोनि प्रश्नकर्ता : ये अवगतिवाले जीव दूसरे में जाते हैं और खुद की इच्छा पूरी करते हैं वह क्या है?
दादाश्री : ऐसा है, ये भूत परेशान नहीं करते। भूत तो देवयोनिवाले होते हैं। उनके साथ आपका अच्छा ऋणानुबंध हो तो फायदा कर देते हैं,
और उल्टा हो तो परेशान कर देते हैं। और जिन जीवों को मृत्यु के बाद तुरन्त ही दूसरी स्थूल देह नहीं मिलती, उन्हें फिर भटकते रहना पड़ता है। जब तक दूसरी देह नहीं मिले तब तक प्रेतयोनि कहलाती है। अब खुराक के बिना तो चलता नहीं, इसलिए उसे किसी और के देह में घुसकर खुराक लेनी पड़ती है।
प्रश्नकर्ता : कोई जप-तप, माला ऐसा-वैसा करते हों, फिर भी उन्हें भूत लग सकते हैं?
दादाश्री : ऐसा नियम नहीं है, परन्तु आपका हिसाब हो, आपने किसीको परेशान किया हो और वही जीव अवगतिवाला हो जाए तो वह आपसे बदला लिए बगैर रहेगा ही नहीं।
प्रश्नकर्ता : कोई हनुमानचालीसा, गायत्री या दूसरा कोई जप कर रहा हो, तो उसका क्या असर होता है उस पर?