________________
३४
आप्तवाणी-५
हो या स्त्री हो, दुःख किसीको पसंद नहीं है। अब इन सबको सुख तो मिलता है, परन्तु किसीको संतोष नहीं है। उसका क्या कारण होगा?
यह सुख, वह सच्चा सुख नहीं है। एक बार सुख स्पर्श कर गया फिर दुःख कभी भी नहीं आए, वह सच्चा सुख कहलाता है। वैसा सुख ढूँढ रहे हैं! मनुष्य जन्म में उसे मोक्ष कहा जाता है। फिर कर्म पूरे हुए कि मोक्ष हो गया! परन्तु पहला मोक्ष यहाँ से हो ही जाना चाहिए।
कषाय नहीं होने चाहिए। कषाय तुझे होते हैं क्या? प्रश्नकर्ता : होते हैं। दादाश्री : कषाय तुझे बहुत पसंद हैं क्या? प्रश्नकर्ता : पसंद तो नहीं, परन्तु होते हैं।
दादाश्री : कषाय ही दुःख है ! पूरा जगत् कषायों में ही पड़ा हुआ है। लोगों को कषाय पसंद नहीं हैं। परन्तु फिर भी कषायों ने उन्हें घेर लिया है। कषायों के ही ताबे में सब आ गए हैं। इसलिए वे बेचारे क्या करें? कितना ही भले गुस्सा नहीं करना हो फिर भी हो जाता है।
तुझे कैसा सुख चाहिए, 'टेम्परेरी या परमानेन्ट?' प्रश्नकर्ता : सभीको शाश्वत सुख चाहिए। दादाश्री : फिर भी शाश्वत सुख मिलता नहीं है, उसका क्या कारण
प्रश्नकर्ता : हमारे कर्म ऐसे हैं, और क्या?
दादाश्री : कर्म चाहे जैसे भी हों परन्तु हमें शाश्वत सुख देनेवाले, दिखानेवाले कोई मिले नहीं है। जो भी कोई शाश्वत सुख भोग रहे हों, उन्हें हम कहें कि 'मुझे रास्ता दिखाइए तो आपका काम हो जाएगा।' परन्तु वैसे कोई मिले नहीं हैं। दुःखी और सिर्फ दुःखी ही मिले हैं। इसलिए दुःख उनका भी नहीं गया और आपका भी नहीं गया।