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________________ आप्तवाणी-५ उसमें किसीका चलता ही नहीं । मुझे भी भोगना पड़ता है ! हर एक धर्म में माफ़ी होती है । क्रिश्चियन, मुस्लिम, हिन्दू सभी में होती है, परन्तु अलग-अलग तरह से होती है। ३३ प्रश्नकर्ता : भगवान ने जो चार प्रकार के सुख दिए हैं, वे चारों ही प्रकार के सुख किसी एक व्यक्ति को आते ही नहीं न? दादाश्री : ये सुख हैं ही नहीं। सभी कल्पनाएँ हैं । यह सच्चा सुख है ही नहीं । प्रश्नकर्ता : कौन-सा सच्चा और कौन - सा झूठा सुख, वह अनुभव हुए बिना किस तरह समझ में आएगा ? दादाश्री : खुद को अनुभव होता ही है। बाहर की किसी भी वस्तु की मदद के बिना ऐसा सुख उत्पन्न होता है कि कभी देखा ही नहीं हो ! प्रश्नकर्ता : वह हमेशा रहना चाहिए । दादाश्री : वह सुख फिर जाता ही नहीं । इन सभी को (ज्ञान लेने के बाद) वैसा सुख उत्पन्न हुआ है, फिर वह गया ही नहीं। फिर उस सुख के ऊपर आप पत्थर डालते रहो, तो आपको लगेंगे ज़रूर, लेकिन हमारी आज्ञा में रहो तो कुछ होगा नहीं । हमारी आज्ञा बिल्कुल आसान है ! सुख का शोधन दादाश्री : किसलिए तू नौकरी करती है बहन ? प्रश्नकर्ता : ऐसा नसीब में लिखकर लाए होंगे। दादाश्री : फिर, पैसों का क्या करती हो? प्रश्नकर्ता : मैं आत्मा को ढूँढ रही हूँ । दादाश्री : आत्मा को कोई ही व्यक्ति ढूँढ सकता है। सभी जीव आत्मा को नहीं ढूँढते। ये सब जीव क्या ढूँढ रहे हैं? सुख को ढूँढ रहे हैं। दुःख किसी जीव को पसंद नहीं है। छोटे से छोटा जीव हो या मनुष्य
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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