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________________ आप्तवाणी-५ २७ __याद आएँ, वह परिग्रह नाश्ता करने में हर्ज नहीं है। लत नहीं लगनी चाहिए। आत्मा को खींच न ले जाए उतनी जागृति रखनी चाहिए। खिंच जाते हों तो प्रतिक्रमण करना चाहिए। भोजन में क्या खींच ले जाता है? प्रश्नकर्ता : तीखा। दादाश्री : वापिस याद आता है? प्रश्नकर्ता : नहीं। दादाश्री : तो वह खाया ही नहीं कहलाता, याद आया तो परिग्रह हैं। याद नहीं आया तो वह परिग्रह नहीं कहलाता। बहीखाता लिखना बाकी हो तो याद आता है कि इतनी जमापूंजी बाकी है। मक्खी वहीं पर मंडराती रहती है। इन 'दादा' की याद ही ऐसी हैं कि सबकुछ भुला दे। यों ही परिग्रह भुला देती है। प्रश्नकर्ता : साधारण संयोगों में हमें जो याद नहीं आता, परन्तु वह सामने आए और कुछ घंटो तक रहे, वह परिग्रह माना जाता हैं? दादाश्री : हाँ! जो हमें स्वरूप से दूर करे, वह परिग्रह ! वह ग्रह लग गया है, परिग्रह का भूत लग गया है। इसलिए 'हम लोग' 'स्वरूप को' भूल जाते हैं! उतना समय घंटे-दो घंटे स्वरूप का लक्ष चूक जाते हैं। अरे, कुछ लोग तो बारह-बारह घंटे तक चूक जाते हैं। और इस जगत् में, जिसे 'ज्ञान' नहीं दिया हो उसे तो वही चलता रहता है। पूरे दिन पानी दूसरे के खेत में ही जाता है। पंप घर का, इंजन-पानी सबकुछ खुद का, पेट्रोल-ऑइल खुद का और फिर भी पानी जाता है लोगों के खेत में! ‘स्वरूप ज्ञान' के बाद सारा पानी खुद के खेत में ही जाता है। 'स्वक्षेत्र' में ही जाता है, परक्षेत्र' में नहीं जाता। प्रश्नकर्ता : पंद्रह दिनों तक याद नहीं आए और फिर याद आए
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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