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आप्तवाणी-५
वह परिग्रह कहलाता है?
दादाश्री : हाँ। भूत आपके पीछे पड़ा है। पूरी दुनिया के भूत लगे हुए हैं आपको? आपको आपके भूत लगे हुए हैं। कुछ बातें होती हैं, उतने में ही भूत लगे हुए हैं। और सब जगहों पर नहीं लगते!
स्वरूपज्ञान की प्राप्ति प्रश्नकर्ता : क्रोध-मान-माया-लोभ को छोड़ने का रास्ता, वह 'ज्ञान' ही है? और वह 'ज्ञान' इस काल के लिए समन्वित है?
दादाश्री : सच्चा ज्ञान तो वह कहलाता है कि जो क्रोध-मान-मायालोभ को खत्म कर दे।
प्रश्नकर्ता : उसे प्राप्त कैसे करें?
दादाश्री : वही ज्ञान यहाँ आपको देता हूँ। इन सबके क्रोध-मानमाया-लोभ सारे खत्म ही हो गए हैं।
प्रश्नकर्ता : हृदय की सरलता आनी इतनी आसान है?
दादाश्री : सरलता आनी या नहीं आनी वह तो पूर्वजन्म का हिसाब है। उसका 'डेवलपमेन्ट' है। जितना सरल होगा उतना अधिक उत्तम कहलाएगा। परन्तु वह 'क्रमिकमार्ग' का है। उसमें सरल व्यक्ति धर्म को प्राप्त करता है, परन्तु उसमें करोड़ो जन्मों तक भी मोक्ष का ठिकाना नहीं पड़ता। और यह 'अक्रमविज्ञान' है। यह एक ही अवतारी 'ज्ञान' है। और यदि इस 'ज्ञान' की आराधना हमारी आज्ञापूर्वक की जाए न तो निरंतर समाधि रहेगी! आप डॉक्टर का व्यवसाय करो तो भी निरंतर समाधि रहेगी। कुछ भी बाधक होगा ही नहीं और स्पर्श भी नहीं करेगा। यह तो बहुत उच्च विज्ञान है। इसलिए कविराज कहते हैं कि दस लाख वर्षों में हुआ नहीं है, वैसा यह हो गया है।
प्रश्नकर्ता : शरणागति की आवश्यकता है, ऐसा? दादाश्री : नहीं। यहाँ पर शरणागति जैसी कोई वस्तु ही नहीं है।