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________________ आप्तवाणी-५ २५ प्रश्नकर्ता : अभिप्राय का प्रतिक्रमण करना चाहिए या प्रत्याख्यान करना चाहिए? दादाश्री : प्रतिक्रमण करना चाहिए। किसीके लिए खराब अभिप्राय बैठ गया हो, तब हमें अच्छा बैठाना चाहिए कि बहुत अच्छा है। जो खराब लगता हो, उसे अच्छा कहा कि बदल जाता है। पिछले अभिप्रायों के कारण आज वह खराब दिखता है। कोई खराब होता ही नहीं है। खुद के मन को ही कह देना चाहिए। अभिप्राय मन ने बनाए हुए हैं। मन के पास सिलक (जमापूँजी) है। किसी भी रास्ते मन को बाँधना चाहिए। नहीं तो मन बेलगाम हो जाता है, परेशान करता है। प्रश्नकर्ता : आपने एक बार कहा था कि मन को सहलाते भी नहीं रहना चाहिए और दबाना भी नहीं चाहिए। तो क्या करना चाहिए? दादाश्री : हमें मन को दबाना नहीं है, परन्तु उसे हमें 'रिवर्स' (पीछे मोड़ना) में लेना है। इसलिए जिनके लिए हमें खराब अभिप्राय हों तो हमें कहना चाहिए कि, 'ये तो बहुत अच्छे हैं, उपकारी हैं', ऐसा कहें तो मन मान जाता है। 'ज्ञान' के आधार पर मन को क़ाबू में किया जा सकता है। दूसरी किसी चीज़ से मन बँध सके ऐसा नहीं है। क्योंकि मन ‘मिकेनिकल' वस्तु है। मन प्रतिदिन 'एग्ज़ोस्ट' होता रहता है। इसलिए अंत में वह खत्म हो जाएगा। नयी शक्ति नहीं मिलती है और पुरानी का उपयोग होता रहता है। मन कहे कि कमर में दुःख रहा है, तब हम उसे कहें कि, 'अच्छा है कि पैर नहीं टूटे।' ऐसा कहें तो मन शांत हो जाएगा। उसे प्लस-माइनस करना पड़ता है! यमराज वश बरते वह... दादाश्री : संयम किसे कहते हैं? प्रश्नकर्ता : परिभाषा मालूम नहीं है। दादाश्री : यह तो भगवान का शब्द है। प्रश्नकर्ता : समझकर हम 'ज्ञान' में रहें, वह संयम है।
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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