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आप्तवाणी-५
दादाश्री : नहीं, परन्तु खेद तो होना ही चाहिए। ये शब्द दुरुपयोग करने के लिए मैं नहीं बोल रहा हूँ। मैं जो बोल रहा हूँ वह आपको 'बोदरेशन' (भार, परेशानी) नहीं रहे इसलिए बोल रहा हूँ। किसीके मन में ऐसा नहीं हो जाए कि, 'मुझे कर्म बंधेगे', इसलिए खुलकर कह रहा हूँ। नहीं तो मैं भी छान-छानकर नहीं बोलूँ कि, 'कर्म तो बँधेगे, यदि आप कभी ऐसा नहीं करो तो।'
'हमने' आपको सभी प्रकार की छूट दी है। ‘मात्र, एक विषय में जागृत रहना' ऐसा कहते हैं और वह भी खुद की स्त्री अथवा खुद का पुरुष उतने तक ही विषय की छूट देते हैं। अणहक्क (बिना हक़ का) के विषय के सामने हम आपको चेतावनी देते है, क्योंकि उसमें बहुत बड़ा जोखिम है। अपने इस 'अक्रम विज्ञान' में इतना ही भयस्थान 'हम' आपको बताते हैं। बाकी सभी तरफ़ से निर्भय बना देते हैं।
अभिप्राय खत्म करो
प्रश्नकर्ता : द्वेष नहीं रहे परन्तु अभाव रहता है, उसका क्या कारण
है?
दादाश्री : अभाव, वह चीज़ अलग है। वे सब मानसिक वस्तुएँ हैं। द्वेष तो अहंकारी वस्तु है। अभाव में 'लाइक' और 'डिसलाइक' रहता है। वह तो सभी को रहता है। हम भी बाहर से अंदर आकर यह बिछौना देखें, तब यहाँ आकर बैठ जाते हैं। परन्तु कोई कहे कि आपको यहाँ नहीं बैठना है, वहाँ बैठना है, तो हम वहाँ बैठ जाते हैं। परन्तु पहले 'लाइक' इस बिछौने को करते हैं। हमें द्वेष नहीं होता, परन्तु 'लाइक-डिसलाइक' रहता है। वह मानसिक है, अहंकार नहीं है!
प्रश्नकर्ता : वह अभिप्राय के आधार पर रहता है न?
दादाश्री : वे अभिप्राय सब किए थे, उनके फलरूप ये अभाव रहा करते हैं। उसे हमें 'प्रतिक्रमण' करके बदल देना चाहिए कि सामनेवाला व्यक्ति तो बहुत अच्छा है, फिर हमें वह अच्छा दिखेगा।