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________________ २० आप्तवाणी-५ पर जाने का 'इगोइज़म' करता है और जहाँ नहीं जाना है, वहाँ नहीं जाने का 'इगोइज़म' करता है और हमें जहाँ नहीं जाना है वहाँ चले जाते हैं और जहाँ जाना है वहाँ मना कर देते है! अपने यहाँ सारा विकल्पी 'इगोइज़म' है। उन लोगों का साहजिक 'इगोइज़म' होता है। गाय-भैंसों को होता है वैसा। वहाँ चोरी करनेवाला चोरी करता रहता है, बदमाशी करनेवाला बदमाशी करता है और 'नोबल' हो वह नोबल रहता है। अपने यहाँ तो नोबल भी चोरी करते हैं और चोर भी नोबिलीटी करते हैं। इसलिए, यह देश ही आश्चर्यजनक है न? यह तो 'इन्डियन पज़ल' (भारतीय पहेली) है ! जो ‘पज़ल' किसीसे 'सोल्व' नहीं हो सकता। फ़ॉरेनवाले बुद्धि लड़ालड़ाकर थक जाते हैं, परन्तु उन्हें इसका ‘सोल्युशन' नहीं मिलता। चाचा का बेटा ऐसे कहता है कि 'गाड़ी नहीं दे सकते, साहब आनेवाले है!' पूरा अहंकार ही कपटवाला! और जो क्रियाएँ करते हैं, वह सब ठीक है। वे अहंकार बढ़ाती हैं, और ऐसे करते-करते सब अनुभव चखते-चखते फिर आत्मानुभव होता प्रश्नकर्ता : फिर अंतिम 'स्टेज' (स्थिति) में अहंकार निकल जाता दादाश्री : फिर उसे ज्ञानी मिल जाते हैं। हर एक 'स्टेन्डर्ड' के शिष्य तैयार होते हैं, उसीके अनुसार उसे शिक्षक मिल जाते हैं, ऐसा नियम हैं। कर्ता बना कि बंधन हुआ। फिर भले किसी भी चीज़ का कर्ता बने! सकाम कर्म का कर्ता बन या निष्काम कर्म का कर्ता बन, कर्ता बना कि बंधन। निष्काम कर्म से सुख मिलता है, संसार में शांति मिलती है और सकाम से दुःख मिलता है। वळगण किसे? प्रश्नकर्ता : आत्मा को शरीर की वळगण (बला, भूतावेश, पाश, बंधन) है, पुद्गल की, इसलिए आत्मा भटकता है?
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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