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________________ आप्तवाणी-५ कान सुनते हैं या आत्मा? यदि आत्मा सुन सकता तो बहरा व्यक्ति भी सुन सकता। तो कहो अब कि 'कौन सुनता है?' प्रश्नकर्ता : कान द्वारा सुनाई देता है, परन्तु यदि चेतन तत्व हो तो! दादाश्री : अब चेतन तत्व तो कभी भी कुछ सुनता ही नहीं है। वह तो ज्ञाता-दृष्टा और परमानंदी है! अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंतशक्ति, अनंतचारित्र उसमें है ! तब क्या सुनने का गुण आत्मा में है, ऐसा आप मान सकते हो? आत्मा सुनता ही नहीं है। आत्मा में सुनने का गुण ही नहीं है। जैसे इस सोने में जंग लगने का गुण नहीं है, वैसे ही आत्मा में सुनने का गुण नहीं है। बोलने का भी गुण नहीं है। प्रश्नकर्ता : परन्तु चैतन्यतत्व हो, तब कान सुनेंगे न? दादाश्री : चैतन्यतत्व की हाज़िरी से ही यह सारा जगत् चल रहा है। यदि चैतन्यतत्व इस शरीर में नहीं हो, आत्मा नहीं हो तो यह शरीर खत्म हो जाए, परन्तु वह चेतन्यतत्व यह नहीं सुनता है। प्रश्नकर्ता : तो कौन सुनता है, वह आप समझाइए। दादाश्री : बात तो समझनी ही पड़ेगी न? यदि ऐसा कहें कि 'आत्मा सुनता है' तो, 'आत्मा बोलता है, मेरे आत्मा की आवाज़ बोलती है', ऐसा कहा जाएगा। लौकिक भाषा में कैसा भी चलने दें, परन्तु भगवान की अलौकिक भाषा में वह एक्सेप्ट (स्वीकार) नहीं होगा। यह आपके साथ बात कर रहे हैं, वह कौन बोल रहा है? प्रश्नकर्ता : आप बोल रहे हैं। दादाश्री : 'दादा भगवान' बोल रहे हैं, तो यह 'टेपरिकॉर्डर' भी बोलता है, और यह दो हज़ार में मिलता है यानी 'दादा भगवान' की क़ीमत दो हज़ार की हुई!!! प्रश्नकर्ता : यह इस बारे में आप समझाइए।
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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