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________________ आप्तवाणी श्रेणी - ५ आत्मा, आत्मधर्म में... दादाश्री : आत्मा क्या कार्य करता है? प्रश्नकर्ता : आत्मा तो ज्ञाता-दृष्टा है। दादाश्री : परन्तु आप तो कहते हो न कि 'मैं सुनता हूँ'। आप आत्मा हो या सुननेवाले हो? प्रश्नकर्ता : 'मैं आत्मा हूँ।' दादाश्री : परन्तु आत्मा तो सुनता नहीं है, कान ही सुनते हैं न? प्रश्नकर्ता : पुद्गल (जिसका सर्जन और विनाश हो) का और आत्मा का संयोग हुआ है न? । दादाश्री : परन्तु आत्मा सुनता होगा या कान? प्रश्नकर्ता : आत्मा सुनता है, कान तो जड़ हैं। दादाश्री : तो फिर बहरे को बुलाकर पूछ लो न? बहरे में आत्मा नहीं है? तो कौन सुनता है? प्रश्नकर्ता : आत्मा नहीं हो तो पुद्गल की कोई भी इन्द्रिय काम नहीं करेगी। दादाश्री : उपस्थिति के कारण तो यह जीवन कहलाता है, परन्तु
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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