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________________ १३१ १३२ १३५ १४१ १४५ मिथ्याभास ९८ आस्वादन?!!! सहजता और देहाध्यास ९९ मित्र शत्रु या शत्रु मित्र? विरही की वेदना १०२ साधना, साध्यभाव से-साधनभाव से१३३ सच्चिदानंद स्वरूप १०३ पूरण-गलन और परमात्मा १३५ प्रशस्त मोह १०४ ज्ञानी की कृपा मन, विरोधाभासी १०५ शास्त्रों का पठन १३६ शंका का उद्भवस्थान १०६ द्रव्य न पलटे, भाव बदले तो... १३७ बुद्धिमार्ग-अबुधमार्ग १०८ अहंकार का लाभ! १३९ ज्ञानी की आज्ञा - प्रत्यक्ष मोक्ष वर्तना १०९ इगोलेस' करने की ज़रूरत नहीं...१३९ ज्ञानी, बालक जैसे ११० अज्ञान का आधार १४० ओपन माइन्ड ११० संसार का 'रूट कॉज़' १४१ योगसाधना से परमात्मदर्शन १११ लक्ष्मी की लिंक साक्षीभाव ११२ मिकेनिकल चेतन १४४ रोके जीव स्वच्छंद तो... ११२ चित्त और अंतरात्मा ज्ञान, दर्शन और वर्तन ११३ वृत्ति बहे निज भाव में १४६ धर्म की दुकानें ११७चित्त और प्रज्ञा १४६ सावधान, अनुकूल में ११८ दादाश्री - कली को खिलाते हैं १४७ बंध - निर्जरा ११८ भूख लगी? बुझाओ! १४९ देव-देवियों का विचरण ११९ टकराव से अटकण १५१ धर्म : अधर्म - वह एक कल्पना १२०स्थितप्रज्ञ कब कहलाते हैं? १५३ मुक्ति का साधन - शास्त्र या ज्ञानी? १२०विचारों द्वारा कर्म कट सकते हैं? १५३ कहाँ वीतराग मार्ग और कहाँ... १२२ कर्मों की निर्जरा-ज्ञानियों का तरीका! १५३ पुण्य का राहबर १२३ शुद्ध उपयोग से अबंध दशा १५५ जहाँ कषाय वहाँ संसार १२४ कर्म का आयोजन - क्रिया या ध्यान? १५६ वृद्धों की व्यथा १२५ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष १५७ अक्रम मार्ग से अकषायावस्था १२६ छूटने का कामी १६० सत्संग की आवश्यकता १२६ भक्ति, योग और ध्यान नियतिवाद १२७ असंयोगी, वही मोक्ष १६७ शुद्ध चिद्रूप १२८ सच्ची सामायिक १६८ निर्-अहंकार से निराकुलता १२८ मंदिरों का महत्व १७१ आधार-आधारी संबंध १२९ अंतिम पल में रामनाम १७२ अकर्त्तापद द्वारा मनोमुक्ति १३° दादा भगवान कौन? १७२ अंतिम दर्शन १३°खुद अपनी ही भक्ति १८२ एसिड का बर्न या मुक्ति का
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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