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________________ आत्मा, आत्मधर्म में.... दृष्टि - मिथ्या और सम्यक् विपरीत ज्ञान द्रव्यचोर भावचोर सम्यक् ज्ञान संसारप्रवाह व्यवहार आत्मा : निश्चय आत्मा कर्त्तापन का मिथ्यात्व वळगण किसे ? २० आत्मसुख का लक्षण प्रकृति करे टेढ़ा : पुरुष करे सीधा २१ वेदनीय उदय-ज्ञानजागृति वीतरागों की रीति २३ प्रकृति का सताना अभिप्राय खत्म करो यमराज वश बरते वह ... २४ तरीका बदलो, वेदन का याद आएँ, वह परिग्रह स्वरूपज्ञान की प्राप्ति परम विनय दादा के दरबार का विनय समझ की श्रेणियाँ पापों का प्रायश्चित 1 — - अनुक्रमणिका १ मृत्यु समय की अवस्थाएँ....... १३ प्रेतयोनि १४ सिद्धात्मा और सिद्धपुरुष ज्ञानी का अशाता उदय जगत् में अध्यात्म जागृति अध्यात्म में इन्वेन्शन मोक्ष के अधिकारी मत चूको यह अंतिम मौका आयुष्य का एक्सटेन्शन ५० ५१ ५२ ५३ ५९ ६० ६२ ६२ ६३ ६४ ६७ ६७ ६८ ७२ २९ चित्त की शुद्धता - सनातन वस्तु में एकता७३ ३० आड़ाईयाँ ७४ ३१ आत्मा ७६ ७६ ७८ ८० ८१ १५ शुद्धात्मा का दर्शन १६ ज़िन्दगी क्या है? १८ मोक्षमार्ग १९ ज्ञानी की विराधना २५ सम्यक् तप २७ मोक्ष का मार्ग है शूरवीरों का.... २८ महावीर का वेदन - स्वसंवेदन ३२ गलन का रहस्य सुख का शोधन ३३ विचारों में निर्तन्मयता ३५ गो टु दादा ! जाप किसका? ज्ञानी मिलने के बाद साधनों की निरर्थकता३५ सद्वर्तन की नापसंदगी अक्रम मार्ग मोक्ष ३६ संसारानुगामी बुद्धि अंतर का भेदन हुए बिना उपजे नहीं अंतरदृष्टि एक या प्रत्येक ? आउटर बुद्धि-इनर बुद्धि ३७ परवशता अध्यात्म और बौद्धिकता ३८ आधार - आधारी अवस्था में अस्वस्थ, स्व में स्वस्थ ४० कर्त्ताभाव, वही कुसंग ४१ जिसका निदिध्यासन करो.... ४२ अध्यात्म का वातावरण ४३ विकल्पों से संसार में कर्मबीज ४६ विज्ञान द्वारा मुक्ति ४७ सापेक्ष व्यवहार ४७ विनय और परम विनय २९ ८२ ८३ ८६ ८९ ९० ९१ ९२ ९२ ९४ ९६ ९७
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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