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________________ खुद के ही आत्मा की भक्ति करता है । वह खुद तब प्रज्ञा स्वरूप में होता है, अज्ञा तो यहीं पर खत्म हो गई। संपूज्य दादाश्री खुद भी अपने अंदरवाले दादा को दोनों हाथों से नमस्कार करके अंदर बैठे हुए 'दादा भगवान के असीम जय जयकार हो' गवाते थे और सबको भी अपने-अपने भीतरवाले दादा भगवान के असीम जय जयकार बोलने को कहते थे ! इसीको पराभक्ति कहते हैं! सुननेवाला और बोलनेवाला दोनों सत्संग करते हैं, ऐसा यह अक्रम विज्ञान है । दादा भगवान कौन? ज्ञान - दर्शन - चारित्र और तप के आधार पर जो अनुभव में आते हैं, वे दादा भगवान हैं। बाकी ये दिखते हैं, वे ए. एम. पटेल हैं। कल यह बुलबुला फट जाएगा । आत्मा सूक्ष्मतम है और देह स्थूल है, जिसे लोग जला देंगे । स्थूल सूक्ष्म को किस तरह जला सकता है? ऐसे ही दादा भगवान आपके, हमारे, सभी के अंदर बिराजमान हैं, जो चौदह लोकों के नाथ हैं और वे आप खुद ही हो !!! डॉ. नीरूबहन अमीन २८
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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