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________________ आप्तवाणी-५ बुद्धिजीवी देख सकते हैं। ये दोनों भूलें 'ज्ञानी पुरुष' में नहीं होतीं! प्रश्नकर्ता : 'ज्ञानी पुरुष' किस पुण्य के आधार पर मिलते हैं? दादाश्री : पुण्यानुबंधी पुण्य के आधार पर ! यह सब जो पुण्य दिखते हैं, वे पापानुबंधी पुण्य हैं। पापानुबंधी पुण्य अर्थात् बंगला, मोटर, घर पर सभी सुविधाएँ, वह सब उस पुण्य के आधार पर होता है, परन्तु उस पुण्य में से विचार खराब आते हैं, किसका ले लूँ, कहाँ से लूट लूँ, कहाँ से इकट्ठा कर लूँ, किसका भोग लूँ ! वह अणहक्क का भोगने के लिए तैयार ही होता है । अणहक्क की लक्ष्मी भी ले लेता है, वह सब पापानुबंधी पुण्य कहलाता है । पुण्य के आधार पर सुख भोगता है, परन्तु नये अनुबंध पाप के डालता है ! १७५ और जिस पुण्य से सुख-सुविधाएँ बहुत नहीं मिलतीं, परन्तु उच्च विचार आते हैं कि, किस प्रकार से किसीको दुःख नहीं हो ऐसा आचरण करूँ, भले ही खुद को थोड़ी अड़चन पड़ती हो, उसमें हर्ज नहीं है, परन्तु किसीको उपाधि में नहीं डालूँ, वह पुण्यानुबंधी पुण्य कहलाता है। अर्थात् नये अनुबंध भी पुण्य के डलते है 1 प्रश्नकर्ता : मुझे आपके पास से 'ज्ञान' लेना है परन्तु हमने पहले गुरु बनाए हुए हैं, उससे कोई मुश्किल तो नहीं आएगी न? दादाश्री : नहीं, आपके गुरु को रहने देना, गुरु के बिना किस तरह चलेगा? वे गुरु हमें सांसारिक धर्म सिखलाते हैं । 'क्या अच्छा करना है और क्या खराब छोड़ देना है' वे सारी बातें हमें समझाते हैं. परन्तु संसार तो खड़ा ही रहेगा न? और हमें तो मोक्ष में जाना है ! उसके लिए 'ज्ञानी पुरुष' चाहिए अलग से, ‘ज्ञानी पुरुष', वे भगवानपक्षी कहलाते हैं । व्यवहार में गुरु और निश्चय में ज्ञानी! दोनों हों तो काम होगा, इसलिए आपके जो गुरु हैं, उन्हें रहने देना। वहाँ पर दर्शन करने भी जाना ! वे प्रश्नकर्ता : ये सत्पुरुष तो सभी को एकसमान बरसात देते हैं, परन्तु यदि मेरा नीम हो और दूसरे का आम हो, तो बीज में फर्क पड़ जाएगा न? फिर एक-सा परिणाम किस तरह प्राप्त करेंगे?
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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