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________________ १७६ आप्तवाणी-५ दादाश्री : अपने यहाँ तो बीज की कोई परेशानी नहीं है। यहाँ पर तो आपको विनयपूर्वक मुझसे कहना है कि साहब, मेरा कल्याण कीजिए। यहाँ पर परम विनय से मोक्ष है। यह पाँचवे आरे का पौद्गलिक सड़न है, यह कभी भी 'रिपेयर' नहीं होगा। यहाँ से रिपेयर करो तो वहाँ से टूटेगा और वहाँ से रिपेयर करो तो यहाँ से टूटेगा। इसके बदले तो 'अक्रम विज्ञान' अंदर से शुद्ध कर देता है और आपको अलग रखता है! प्रश्नकर्ता : 'दादा' मुझे 'ज्ञान' देंगे परन्तु मुझमें समझने की शक्ति नहीं हो तो क्या करूँ? दादाश्री : भीतर आत्मा है न, जीवित हो इसलिए सब हो जाएगा। आपमें समझने की शक्ति है, ऐसा यदि मैं पास करने बैलूं तो कोई पास ही नहीं हो पाएगा। इसलिए मैंने शुरूआत में ऋषभदेव भगवान की मूर्ति के पास बात करके पूछा था कि यह अक्रम विज्ञान देना हो तो किसे दूं? पास होने के लिए तैतीस प्रतिशत मार्क्स चाहिए और कोई तीन प्रतिशत के ऊपर आता ही नहीं। तब भगवान ने कहा कि तीन प्रतिशतवाले को दो। उसके बाद फिर पार वेल्युवाले को देने लगे, यानी कि ज़ीरो मार्क्सवाले ! अभी तो माइनस मार्क्सवालों को यह 'ज्ञान' दिया जा रहा है। प्रश्नकर्ता : याद करते ही हमें जो दादा भगवान के दर्शन होते हैं और रास्ता दिखाते हैं, वह किसी वैज्ञानिक प्रक्रिया के आधार पर है? दादाश्री : वह स्वभाव से ही है सारा! उसमें शुद्ध चेतन साइलेन्ट होता है। यह 'लाइट' साइलेन्ट है। 'लाइट' के आधार पर सब क्रियाएँ करता है या नहीं करता? 'लाइट' का फायदा मिलता है! प्रश्नकर्ता : याद करते ही, 'दादा भगवान' हाज़िर हो जाते हैं। वह क्रिया शुद्ध चेतन के आधार पर होनेवाली बाहर की क्रिया है? दादाश्री : आधार नहीं, वह तो स्वाभाविक क्रिया है। भीतर सूक्ष्म
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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