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आप्तवाणी-५
दादाश्री : भगवान व्यक्त हो जाएँ, ऐसे नहीं हैं। वे अव्यक्तरूप में रहे हुए हैं!
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प्रश्नकर्ता : आप जैसों में ही भगवान व्यक्त होते हैं, और कहीं पर व्यक्त नहीं होते, इसलिए हम यहाँ पर आए हैं।
दादाश्री : वे और कहीं तो होते नहीं, किसी ही घर में पूर्ण उजाला हो जाता है, फिर उस उजाले से दूसरे सभी दीपक प्रज्वलित होते हैं। एक दीये में से दूसरा दीया प्रकाशित होता है, परन्तु अचानक दीया तो कभी ही प्रकट होता है! हमें सूरत के स्टेशन पर अचानक दीया प्रज्वलित हो
गया था!
प्रश्नकर्ता : आपका जो व्यवहार है, वह भी शुभ व्यवहार में से ही उत्पन्न होता है न?
दादाश्री : संसार में एक तो शुभ व्यवहार है और एक अशुभ व्यवहार है। जगत् के लोग सिर्फ शुभ व्यवहार में नहीं रह सकते, वे शुभाशुभ में रहते हैं ! संत शुभ व्यवहार में रहते हैं और जो चार वेदों से ऊपर पहुँच चुके हैं, ऐसे ‘ज्ञानी पुरुष' शुभाशुभ व्यवहार से परे शुद्ध व्यवहार में होते हैं !
प्रश्नकर्ता : गुरु किसे कहते है ?
दादाश्री : भूलवाला गुरु नहीं हो सकता। परन्तु वे कैसी भूलें होती हैं, तो चलाई जा सकती हैं? कि जो भूलें दूसरे किसीको भी नुकसानदायक नहीं हो। खुद ही जानता है कि ये भूलें अभी तक मुझमें बची हैं, यानी कि सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम भूलें होती हैं । नहीं तो परमात्मा और उनमें फर्क ही क्या रहा?
'ज्ञानी पुरुष' खुद देहधारी रूप में परमात्मा ही कहलाते हैं । जिनकी एक भी स्थूल भूल नहीं है या एक भी सूक्ष्म भूल नहीं है
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जगत् दो प्रकार की भूलें देख सकता है : एक स्थूल और एक सूक्ष्म । स्थूल भूलें बाहर की पब्लिक भी देख सकती है और सूक्ष्म भूलें