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________________ आप्तवाणी-५ १७३ दादाश्री : निरंतर हाज़िर ही हैं। इन सबको निरंतर हाज़िर रहते हैं! प्रश्नकर्ता : परन्तु आपश्री को 'दादा भगवान' क्यों कहते हैं? दादाश्री : यह 'आपश्री' आप किसे मानते हो? ये जो दिखते हैं, उन्हें कहते हो? आप तो उन्हें ही पहचानते हो न? 'आपश्री' मुझे कहते हो न, वह क्या है? ये जो दिखते हैं, वे तो भादरण गाँव के पटेल हैं और कोन्ट्रेक्ट का व्यवसाय करते हैं। 'दादा भगवान' तो अंदर जो व्यक्त हुए हैं, आत्मा व्यक्त हुआ है, प्रकट हुआ है, वे 'दादा भगवान' हैं, जिन्हें संसारी 'प्रकट पुरुष' कहते हैं! प्रश्नकर्ता : मनुष्य कदापि ईश्वर या परमात्मा नहीं बन सकता। फिर भी लोगों से खुद के ईश्वर या परमात्मा होने का दावा करे, ईश्वरी चमत्कार होने का दावा करे, वह क्या ठीक है? दादाश्री : वह दावा करने की ज़रूरत ही नहीं है ! ‘परमात्मा हूँ' ऐसा किसीसे दावा किया ही नहीं जा सकता, फिर भी यदि करे तो वह मूर्ख कहलाएगा। लोग मुझे भगवान कहते हैं, परन्तु भगवान किसे कहते हैं? इस देह को कभी भी भगवान नहीं कह सकते। ये तो पटेल हैं। ये दिखते हैं, वे 'दादा भगवान' नहीं हैं। 'दादा भगवान' तो भीतर प्रकट हुए हैं वे हैं, देहधारी को भगवान किस प्रकार कह सकते हैं?! प्रश्नकर्ता : भगवान व्यक्ति के रूप में हैं या शक्ति के रूप में हैं? दादाश्री : दोनों सच्चे हैं, परन्तु जो व्यक्ति के रूप में पूजे उसे अधिक लाभ मिलेगा। व्यक्ति के रूप में अर्थात् जहाँ भगवान व्यक्त हुए हो वहाँ! सिर्फ मनुष्य में ही भगवान व्यक्त हो सकते हैं, दूसरी किसी योनि में भगवान व्यक्त नहीं हो सकते। आत्मा ही परमात्मा है, परन्तु व्यक्त होना चाहिए। व्यक्त हो जाए, खुलासा हो जाए फिर चिंताएँ चली जाती हैं, उपाधियाँ जाती हैं। प्रश्नकर्ता : भगवान कहाँ पर व्यक्त होते हैं?
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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