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________________ आप्तवाणी-५ १४५ उल्टा रास्ता लोगों ने पकड़ा है? इसलिए तो अनंत जन्मों से भटक रहे इस जगत् में दो वस्तुएँ हैं : एक सचर है और एक अचर है। यह शरीर सचराचर है और जगत् भी पूरा सचराचर है। सचर मिकेनिकल भाग है, अनात्म विभाग है और अचर आत्मविभाग है। अर्थात् बात को समझ लें तो हल आएगा, नहीं तो करोड़ों जन्मों तक भी ठिकाना नहीं पड़ेगा। वर्ना करोड़ों जन्मों तक त्याग करे, तप करे फिर भी कुछ होगा नहीं। आत्मा त्यागस्वरूप ही है। सर्वसंग परित्याग स्वरूप है। अब आत्मा के लिए त्याग करने जाएँ, तो वह सब ऊधम है। 'त्यागे उसे आगे।' आपको यदि भविष्य में चाहिए तो त्याग करो। चित्त और अंतरात्मा प्रश्नकर्ता : चित्त और अंतरात्मा के बीच का भेद समझाइए। दादाश्री : चित्त शुद्ध हुआ, वही अंतरात्मा है। वह अंतरात्मा किसलिए कहलाता है कि खुद के परमात्मा को यानी कि शुद्धात्मा को भजना है, उस रूप अर्थात् कि शुद्धात्मरूप होना है। पहले, शुद्धात्मा प्रतीति में आता है, लक्ष्य में आता है। उसके बाद अनुभव पद में रहने के लिए, शुद्धात्मा के साथ एक लक्ष्य, एक तार करना है! परन्तु जब तक बाहर फाइलें होंगी, तब तक वैसा पूरे दिन नहीं हो पाएगा। इसलिए अंतरात्मा कहा है। अंतरात्म दशा यानी इन्ट्रिम गवर्मेन्ट और ये फाइलें पूरी हो गईं तो फुल गवर्मेन्ट, परमात्मा बनेगा। यहाँ पर आ जाओगे तो उसका निबेड़ा आएगा और लम्बा घूमने जाओगे तो सिर्फ पुस्तकें और पुस्तकें भरेंगी। उसका अंत ही नहीं आएगा। परमात्मा परमानेन्ट है। मूढ़ात्मा-बहिर्मुखी आत्मा, वह परमानेन्ट नहीं है और अंतरात्मा परभव में भी साथ में जाएगा। यही की यही मूढ़ात्म दशा परभव में साथ में नहीं होगी, वहाँ दूसरी मूढ़ात्म दशा आएगी।
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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