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आप्तवाणी-५
तुम्हें बुद्धू कहेंगे। इसलिए इन दादा का नाम छोड़ना मत, नहीं तो मारा जाएगा।
फिर हम मुंबई आ गए। वह आदमी दो-चार दिन बाद यह बात भूल गया। उसे फिर बहुत भारी नुकसान हुआ। इसलिए उन पति-पत्नी दोनों ने खटमल मारने की दवाई पी ली! वह दादा का नाम लेना ही भूल गया था। पर पुण्यशाली इतना कि उसका भाई ही डॉक्टर था। वह आया
और बच गया! फिर वह मोटर लेकर दौड़ता हुआ मेरे पास आया। मैंने उसे कहा, 'इन दादा का नाम लेते रहना और फिर ऐसा कभी भी मत करना।' तब फिर वह नाम लेता रहा। उसके पाप सब धुल गए और सब ठीक हो गया।
जब 'दादा' बोलें, उस घड़ी पाप पास में आते ही नहीं। चारों तरफ मंडराते रहते हैं, परन्तु छूते नहीं आपको। आप झोंका खाते हो, तब उस घड़ी छू जाते हैं। रात को नींद में नहीं छूते। यदि जब तक जग रहे हैं तब तक बोलते रहें और सुबह में उठते ही बोले हों, तो बीच का समय उस स्वरूप कहलाता है।
मिकेनिकल चेतन जगत् के लोग जानते ही नहीं कि इसमें चेतन किसे कहते हैं? वे तो बोडी (शरीर) को चेतन कहते हैं। सभी कार्य करता है, वह चेतन करता है, ऐसा कहते हैं। परन्तु चेतन कुछ भी नहीं करता। सिर्फ 'जानने' की और 'देखने' की, दो ही क्रियाएँ उसकी है। दूसरा सब अनात्म विभाग का है।
यह बोलता कौन है? वह निश्चेतन चेतन है, मिकेनिकल चेतन है। वह दरअसल चेतन नहीं है। कुछ लोग इसे स्थिर करते हैं। अरे, किसलिए स्थिर करता है? तू मूल स्वरूप को ढूंढ निकाल न! मूल स्वरूप स्थिर ही है। यह वापिस उसे स्थिर करने की आदत किसलिए डाल रहा है? यह निश्चेतन चेतन तो मूलतः चंचल स्वभाव का ही है। मिकेनिकल का अर्थ ही चंचल होता है। इस चंचल को स्थिर करने फिरते हैं, तो वह कितना