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आप्तवाणी-५
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का कहाँ रहा?
दादाश्री : वे टेन्डर जो भरे जाते हैं, वे पाप-पुण्य के उदय के अनुसार ही भरे जाते हैं। इसलिए मैं कहता ज़रूर हूँ कि टेन्डर भरो, परन्तु मैं जानता हूँ कि किस आधार पर टेन्डर भरा जाता है। इन दो नियमों से बाहर जाया जा सके ऐसा नहीं है। ____ मैं बहुत लोगों को मेरे पास 'टेन्डर' भरकर लाने को कहता हूँ। पर कोई भरकर नहीं लाया है। किस तरह भरें? वह पाप-पुण्य के अधीन है। इसलिए पाप का उदय हो तब बहुत भाग-दौड़ करेगा तो, बल्कि जो है वह भी चला जाएगा। इसलिए घर जाकर सो जा और थोड़ा-थोड़ा साधारण काम कर, और पुण्य का उदय हो तो भटकने की ज़रूरत ही क्या है? घर बैठे आमने-सामने थोड़ा-सा काम करने से सब आ मिलता है, इसलिए दोनों ही स्थितियों में भाग-दौड़ करने को मना करते हैं। बात को सिर्फ समझने की ही ज़रूरत है। ___हम १९६८ में जयगढ़ की जेटी बना रहे थे। वहाँ एक कान्ट्रेक्टर मेरे पास आया। वह मुझसे पूछने लगा, 'मैं अपने गुरु महाराज के पास जाता हूँ। हर साल मेरे पैसे बढ़ते ही रहते हैं। मेरी इच्छा नहीं, फिर भी बढ़ते जाते हैं, तो क्या वह गुरु की कृपा है?' मैंने उसे कहा, 'वह गुरु की कृपा है, वैसा मत मानना। यदि पैसे चले जाएँगे तो तुझे ऐसा लगेगा कि लाओ, गुरु को पत्थर मारूँ!'
इसमें गुरु तो निमित्त हैं, उनके आशीष निमित्त हैं। गुरु को ही जब चाहिए, तब चार आने भी नहीं मिलें न! इसलिए फिर उसने मुझसे पूछा कि, 'मुझे क्या करना चाहिए?' मैंने कहा, 'दादा का नाम लेना।' अभी तक तेरी पुण्य की लिन्क आई थी। लिन्क मतलब अंधेरे में पत्ता उठाए तो चोक्का आए, फिर पंजा आए, फिर वापिस उठाए तो छक्का आए। तो लोग कहेंगे कि, 'वाह सेठ, वाह सेठ, कहना पड़ेगा।' वैसा तुझे १०७ बार सच्चा पड़ा है। पर अब बदलेगा। इसीलिए सावधान रहना। अब तू निकालेगा तो सत्तावन के बाद तीन आएगा और तीन के बाद १११ आएगा! तब लोग