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आप्तवाणी-५
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अहंकार का लाभ !
अहंकार गया कि हल आ गया । अहंकार है तब तक संसार खड़ा रहेगा। या तो आत्मा होता है, या फिर अहंकार होता है । अहंकार हो तो आत्मा का लाभ नहीं मिलता। और आत्मा है तो फिर अहंकार का लाभ नहीं मिलता ।
प्रश्नकर्ता : अहंकार में भी लाभ हो सकता है?
दादाश्री : इस अहंकार के लाभ में तो ये सब बेटियों की शादी करवाते हैं, बेटों की शादी करवाते हैं। बेटे के बाप बनकर घूमते हैं। पत्नी के पति बनकर घूमते हैं । उसे अहंकार का लाभ मिला नहीं कहा जाएगा? पूरा जगत् अहंकार का ही लाभ भोग रहा है। हम स्वरूपधारी आत्मा का लाभ भोग रहे हैं। यह स्वउपार्जित है और वह अहंकार उपार्जित है ।
प्रश्नकर्ता : भ्रांति जाए तो मुक्त हुआ जाएगा न ?
दादाश्री : हाँ, भ्रांति गई अर्थात् 'जैसा है वैसा' जान लिया। भ्रांति गई यानी अज्ञान गया, अज्ञान गया यानी माया गई । भगवान की माया गई यानी अहंकार गया, अहंकारशून्य हो गया यानी हल आ गया !
'इगोलेस' करने की ज़रूरत नहीं...
जिसे किसी भी प्रकार का काम नहीं होता, वह आत्मा !
प्रश्नकर्ता : ये प्रयत्न कौन करता है?
दादाश्री : अहंकार करता है।
प्रश्नकर्ता : उछलता है कौन?
दादाश्री : अहंकार का बाहरी भाग उछलता है, वह डिस्चार्ज होती हुई वस्तु है, और 'इगोइज़म' चार्ज करता है।
प्रश्नकर्ता : संपूर्ण निर्अहंकार कब उत्पन्न होता है ?