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________________ १४० आप्तवाणी-५ दादाश्री : आपको उसे उत्पन्न करके क्या करना है? प्रश्नकर्ता : 'इगो' से फायदा नहीं है, वह तो पता चला है I दादाश्री : अर्थात् यह 'इगोलेस' हो जाए तो कुछ उत्तम फल मिलेगा? होगा । प्रश्नकर्ता : खुद के अंदर का आनंद, परमानंद उसके बाद प्रकट दादाश्री : ऐसा है कि 'इगोलेस' करने की ज़रूरत नहीं है। 'हम खुद कौन हैं' वही जानने की ज़रूरत है। अपना जो स्वरूप है उसमें इगोइज़म करने की ज़रूरत ही नहीं है। 'आप' चंदूभाई नहीं हो, फिर भी 'चंदूभाई हूँ' ऐसा मानते हो, वही 'इगोइज़म' है। अज्ञान का आधार अंदर चिढ़ होती है उसे खुद मोड़ने का प्रयत्न करता है, परन्तु चिढ़ इफेक्ट है और मोड़ने का प्रयत्न करता है, वे कॉज़ेज़ हैं। कितने ही लोग चिढ़ते हैं, परन्तु उसका पछतावा करते नहीं और ऊपर से कहते हैं कि 'गुस्सा ही करने जैसा था।' वे भी कॉज़ेज़ हैं। समझ में आया आपको? प्रश्नकर्ता : चिढ़ने का कारण क्या है? दादाश्री : अज्ञानता। अज्ञानता के कारण राग-द्वेष करता रहता है। यह अच्छा, यह बुरा ऐसे करता रहता है । वास्तव में तो यह इफेक्ट इसका है। उसे 'हम' स्वीकार लेते हैं, उसे आधार देते हैं । 'मुझे ठंड लगी, मुझे हुआ, मुझे भाता नहीं है।' इसे आधार दिया जाता कहा जाता है । अब कढ़ी खारी लगी, वह बात जीभ की हद की है। उसे हमें कहने की ज़रूरत है? इस तरह आधार देते हैं और कॉज़ेज़ करते हैं। पूरी ज़िन्दगी राग-द्वेष करते रहते हैं। पसंद की वस्तुओं पर राग और नापसंद वस्तुओं पर द्वेष करते हैं। प्रश्नकर्ता : यह राग-द्वेष करनेवाला कौन है ? अज्ञानता ?
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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