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________________ १३६ आप्तवाणी-५ ज्ञानी के कृपापात्र बनना है, दूसरा कुछ करना नहीं है। कृपा प्राप्त करने में क्या रुकावट डालता है? हमारी आड़ाइयाँ। प्रश्नकर्ता : वे आड़ाइयाँ नहीं निकालनी चाहिए? दादाश्री : नहीं, वे जल्दी लाभ नहीं होने देतीं। हम आड़ाइयाँ देखें वहाँ पर करुणा रखते हैं। इस प्रकार करुणा रखते-रखते आड़ाइयाँ धीरेधीरे निकलेंगी। वहाँ अधिक प्रयत्न करना पड़ता है। शास्त्रों का पठन प्रश्नकर्ता : सद्शास्त्रों के पठन से पापों का क्षय नहीं हो सकता? दादाश्री : नहीं, उससे पुण्य ज़रूर बँधता है। पापों का क्षय नहीं होता। दूसरा नया पुण्य बँधता है, वह पुण्यानुबंधी पुण्य कहलाता है। सशास्त्र का अध्ययन करें, उसमें से स्वाध्याय होता है। इससे चित्त की एकाग्रता, मन की एकाग्रता बहुत सुंदर हो जाती है। प्रश्नकर्ता : 'ज्ञानी पुरुष' के सत्संग के साथ सद्शास्त्र का पठन और मनन करना चाहिए न? दादाश्री : वह ठीक है, परन्तु यदि ज्ञानी के सत्संग से फुल मार्क्स आ जाएँ, फिर पठन की ज़रूरत नहीं रही न? फुल मार्क्स आ जाने के बाद, इन सबका पठन करेंगे तो 'बोदरेशन' बढ़ेगा बल्कि। अब इतनी सुंदर जागृति होने के बाद टाइम बेकार जाएगा। प्रश्नकर्ता : निमित्त की तरह पढ़ें तो? दादाश्री : निमित्त की तरह ठीक है, परन्तु वह संयोगाधीन है। अर्थात् अपने काबू में नहीं है। __ प्रश्नकर्ता : संयोगों पर काबू नहीं है, ऐसे कहना, वह अपने मन की कमज़ोरी नहीं कहलाएगी? दादाश्री : नहीं, इस वर्ल्ड में ऐसा कोई मनुष्य नहीं है कि जिसका
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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