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आप्तवाणी-५
उसी तरह लोभ भी पूरण- गलन होता है। सबकुछ पूरण- गलन होता रहता है।
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प्रश्नकर्ता : आत्मा और पुद्गल में फर्क क्या है ?
दादाश्री : आत्मा एक ही वस्तु है। एक ही वस्तु अर्थात् वह बढ़तीघटती नहीं है, एक ही स्वाभाविक वस्तु है । जब कि पुद्गल स्वाभाविक वस्तु नहीं है।
पुद्गल किसे कहते हैं? उसमें खाने का डाले, वह पूरण कहलाता है और संडास जाए, वह गलन कहलाता है। श्वास लिया वह पूरण और उच्छवास वह गलन है । यह पुद्गल पुगल में से बना है।
इस शरीर में पुद्गल और आत्मा दो ही वस्तुएँ हैं । यदि पुद्गल और आत्मा को अलग करना आ जाए तो उसे आत्मा मिल जाएगा। परन्तु ऐसी मनुष्य की शक्ति नहीं है, वह मनुष्य की मति से बाहर की बात है । यह बात बुद्धि से परे है ! 'ज्ञानी पुरुष' में भगवान स्वयं बैठे हुए हैं, तो उनकी कृपा से क्या नहीं हो सकता?
ज्ञानी की कृपा
प्रश्नकर्ता : यहाँ सब बैठे हैं तो दादा भगवान की कृपा हर एक पर एक समान उतर रही है?
दादाश्री : नहीं, एक समान नहीं । आपका 'दादा भगवान' पर कैसा भाव है, उस पर आधारित है।
प्रश्नकर्ता : मानो कि मेरा बर्तन बड़ा है तो वह अधिक पानी लेगा और किसीका बर्तन लोटे जितना पानी लेगा। तो यह बर्तन पर आधारित है या भाव पर ?
दादाश्री : उसमें बर्तन की ज़रूरत नहीं है । किसीको कुछ नहीं आता हो तो भी मैं कहूँ कि, 'कुछ नहीं आता है तो यहाँ पर बैठे रहना भाई, जा वे जूते साफ करते रहना।'