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आप्तवाणी-५
राजू अलग।' मैं जब अस्पताल में उससे मिलने गया तब वह बहुत आनंद में था। और कहने लगा, 'मेरे साथ राजू सो गया है!'
सभी डॉक्टर आश्चर्यचकित हो गए! ऐसा केस उन्होंने कभी देखा ही नहीं था। यह सब क्या है? तब कहें कि, 'दादा हैं इसके पीछे।' 'इस ज्ञान' का प्रताप है। वह भी फिर क्षत्रियकुल का था। दादा ने कहा कि, 'तू अलग ही है, राजू से।' इसलिए उसने अलग ही माना और आप वणिक कुलवालों को तो छुए बगैर रहेगा क्या?
प्रश्नकर्ता : छू जाता है दादा। यह जलना किस कारण का परिणाम है?
दादाश्री : वह तो हम क्षत्रियों के काम ही ऐसे होते हैं। अशाता वेदनीय किसीको दी हो तो उतनी अशाता वेदनीय हमें भुगतनी पड़ती है, फिर कोई भी देहधारी हो, मनुष्य हो या जानवर हो! यह सब पैसे कमाने के लिए नहीं किया। अशाता वेदनीय का यह फल है। किसीको थोड़ा भी दुःख हो वैसा त्रास दें, तब ऐसा फल आता है। क्षत्रिय लोग अशाता देना भी जानते हैं और भोगना भी जानते हैं। जब कि आप तो अशाता करते भी नहीं और भोगते भी नहीं।
प्रश्नकर्ता : यह पूर्वजन्म का होगा न? दादाश्री : यह पूर्वजन्म के 'कॉज़ेज़' के 'इफेक्ट्स' हैं।
माता के पेट में से बच्चा बाहर आता है, तब वह तो उल्टे सिर होता है। उससे तो घूमा भी नहीं जाता। फिर भी वह बाहर आता है तब माँ धकेलती है या डॉक्टर खींचता है या बच्चा आता है? कौन करता है यह? ये सब इफेक्ट्स हैं, परिणाम हैं। पूर्व में जो कॉज़ेज़ किए थे, उनके परिणाम स्वाभाविक रूप से आते हैं।
मित्र शत्रु या शत्रु मित्र? 'नीपजे नरथी तो कोई न रहे दु:खी,
शत्रु मारीने, सौ मित्र राखे।'