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आप्तवाणी-५
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स्वरूप हैं और अकषाय मोक्ष स्वरूप है। कषाय मूल है। यदि कषाय गए तो काम हो गया, नहीं तो साधु भी नहीं और संन्यासी भी नहीं। इसके बदले तो मंदकषायवाले गृहस्थी अच्छे।
वृद्धों की व्यथा ये भाई स्वभाव से मंदकषायी हैं, परन्तु 'ज्ञान' के बिना चित्त किसमें रहेगा? पूरे दिन व्यवसाय में, बच्चों में, कोई आया हो उसमें, खाने-पीने में चित्त चला जाता है। चित्त सारा इन्हीं में बिखर जाता है। इससे पुण्य मिलता है परन्तु अब कब तक अनाज की बालें काटें? बाजरा बोओ, काटो, और खाओ। बोओ, काटो और खाओ। ऐसा काम कब तक करते रहें?
फिर, बिना पूछे सलाह भी देते हैं ! बेटा पिताजी से नहीं पूछे फिर भी, 'खड़ा रह, खड़ा रह, तू भूल कर लेगा' करके सलाह दे आता है। भगवान कहते हैं कि बच्चे बहुत परेशानी में पड़ गए हों, तब जवाब देना। हाँ, वह पूछता रहे, तब दुनियादारी में हमें जवाब देना ही पड़ेगा। बगैर पूछे खुद के उपयोगवाला कौन अक्लमंदी करेगा? आप रुपये गिन रहे हों और बेटा आपसे व्यवसाय की बात पूछने आए, तब आपको ऐसा होता है कि यह बातें कम करे तो अच्छा। वैसे ही आत्मा के लिए निरंतर होना चाहिए। फिर भी व्यवहार है तो उसमें पड़े बगैर चलेगा नहीं, परन्तु भीतर जानबूझकर हाथ नहीं डालना चाहिए।
प्रश्नकर्ता : बेटे को अनुभव कम होता है और कुछ भूल करे ऐसा दिखे, तो कहने का मन होगा न?
दादाश्री : यह बात तो आपके पिताश्री होते न, तो वे भी आपको कहते कि 'भाई अभी कच्चा है!' और उनके पिताश्री होते तो वे भी ऐसा ही कहते! यह हिन्दुस्तान का रिवाज है। इसे ही ओवरवाइज़ होना कहा है भगवान ने। साठ वर्ष के पिता थे, वे भी कहेंगे कि अभी बच्चा है न! अरे, कैसा बच्चा? दादा हो गया है न अब!
यह आपको जो 'ज्ञान' है न, वह अपने गुजरातियों में अंतिम घड़ी