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आप्तवाणी-५
हो । कैसे पक्के (मोक्ष के लिए पक्के) हैं भगवान ! माइनस (बाकी) तो करते ही नहीं !
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जहाँ कषाय वहाँ संसार
स्वरूपज्ञान के बाद कुछ भी करना नहीं होता है। इसलिए हमने कहा है कि कुछ करना मत । करती है दूसरी शक्ति और लोग यों ही सिर पर लेकर घूमते हैं, उसके कारण बल्कि जन्म बढ़ते हैं ।
जहाँ कषाय हैं, वहाँ पर निरे परिग्रह के गट्ठर ही हैं । फिर वह गृहस्थी हो या त्यागी हो या हिमालय में पड़ा रहता हो ! कषाय का अभाव है वहाँ परिग्रह का अभाव है । फिर भले ही वह राजमहल में रहता हो ! मेरे पास कहाँ परिग्रह हैं ? लोगों को लगता है कि दादा परिग्रही हैं । परिग्रही यानी सिर पर बोझा। हमें कभी भी बोझा नहीं लगता । शरीर का भी बोझा हमें नहीं लगता! फिर भी ये दादा खाते हैं, पीते हैं, विवाह में जाते हैं, स्मशान में जाते हैं!!!
वीतराग इतना ही देखते हैं कि कषाय का अभाव है या नहीं? फिर वे त्यागी की गद्दी नहीं देखते और गृहस्थी की गद्दी भी नहीं देखते ! कषाय का अभाव है या नहीं इतना ही देखते हैं । या फिर कषायमंदता बरतती है या क्या? साधुओं में कुछ, दो - पाँच प्रतिशत भद्र स्वभावी, मंदकषायी होते हैं।
प्रश्नकर्ता : वे समझदारी में मंद कहलाते हैं ?
दादाश्री : समझदारी में नहीं, यों ही स्वाभाविक भद्र, फिर भी उन्हें भगवान ने कषाय रहित नहीं कहा । 'मैं हूँ', 'मैं हूँ' बोलते हैं तो वह कषाय
है।
कृपालुदेव की पुस्तकें पढ़ने से मंदकषायी हुआ जा सकता है, परन्तु वह लोगों को समझ में नहीं आया। मंदकषायी किसे कहते हैं? कषाय उत्पन्न होते हैं उसका खुद को पता चलता है, परन्तु दूसरे किसीको पता नहीं चलने देते। कषायों को मोड़ा जा सके ऐसी दशा । कषाय संसार का