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________________ आप्तवाणी-५ १२३ है। इसलिए हमलोगों के संस्कार बिक गए हैं, गिरवी रख दिए गए हैं। इसे जीवन जीया किस प्रकार कहा जाएगा? हम हिन्दुस्तान की आर्य प्रजा कहलाते हैं। आर्यप्रजा को ऐसा शोभा नहीं देता। आर्यप्रजा में तीन चीजें होती हैं। आर्यआचार, आर्यविचार और आर्यउच्चार। अभी वे तीनों ही अनाड़ी हो गए हैं! और मन में न जाने क्या मानते हैं कि समकित हो गया है और मोक्ष हो जाएगा! अरे, तू जो कर रहा है उससे तो लाख जन्मों तक भी ठिकाना नहीं पड़ेगा। मोक्षमार्ग ऐसा नहीं है। पुण्य का राहबर प्रश्नकर्ता : जब तक मोक्ष के मार्ग पर नहीं पहुँच जाएँ, तब तक पुण्य नाम के राहबर की तो ज़रूरत पड़ेगी न? दादाश्री : हाँ, उस पुण्य के राहबर के लिए तो लोग शुभ-अशुभ में पड़े हुए हैं न? उस राहबर से सबकुछ मिलेगा, परन्तु मोक्षमार्ग पर चलते हुए उससे पुण्य बँधता है। लेकिन ऐसे पुण्य की ज़रूरत नहीं है। मोक्ष में जानेवाले के पुण्य तो कैसे होते हैं? जगत् में सूर्यनारायण उगे या नहीं उसे तो वह भी पता नहीं चलता और पूरी ज़िन्दगी निकल जाती है, ऐसे पुण्य होते हैं! तो फिर ऐसे कचरा पुण्य का क्या करना है? प्रश्नकर्ता : यह मार्ग नहीं मिले, तब तक तो उस पुण्य की ज़रूरत है न? दादाश्री : हाँ, वह ठीक है, परन्तु लोगों के पास पुण्य कहाँ साबुत बचे हैं? कुछ भी ठिकाना नहीं, क्योंकि आपकी क्या इच्छा है? तब कहता है कि पुण्य करूँगा तो पाप का उदय नहीं आएगा। जब कि भगवान क्या कहते हैं? तूने सौ रुपये का पुण्य बाँधा तो तेरे खाते में सौ रुपये जमा होंगे। उसके बाद दो रुपये जितना पाप किया यानी कि किसी व्यक्ति को 'हट, हट दूर खिसक', ऐसा कहा, उसमें थोड़ा तिरस्कार आ गया। अब इसका जमा-उधार नहीं होता है। भगवान कोई कच्ची माया नहीं हैं। यदि पुण्य-पाप का जमा-उधार होता, तब तो इन बनियों के वहाँ थोड़ा भी दुःख नहीं होता! परन्तु यह तो आप सुख भी भोगते हो और दुःख भी भोगते
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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