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________________ ११६ आप्तवाणी-५ प्रश्नकर्ता : समझने के बाद ज्ञान में आने में कितनी देर लगती है? दादाश्री : जितना जिसका समझना पक्का, उतना उसका ज्ञान में डेवलपमेन्ट होता जाएगा। वैसा कब होगा उसकी चिंता नहीं करनी है। वह तो अपने आप ही ज्ञान में परिणामित होगा, अपने आप ही छूट जाएगा। इसलिए यहाँ पर समझ-समझ करते रहना। 'ज्ञान' ही काम कर रहा है। आपको कुछ भी नहीं करना है। नींद में भी 'ज्ञान' काम कर रहा है, जगते हुए भी 'ज्ञान' काम कर रहा है और स्वप्न में भी 'ज्ञान' काम कर रहा है। 'दिल्ली किस तरह पहुँचा जाएगा' इस बात को समझ तो दिल्ली पहुँचा जाएगा। समझ बीजस्वरूप है, और ज्ञान वृक्षस्वरूप है। आपकी तरफ से पानी का छिड़काव और भावनाएँ चाहिए। प्रश्नकर्ता : आचरण में आ गया, वही चारित्र कहलाता है? दादाश्री : चारित्र कहलाता है, परन्तु वह सम्यक्चारित्र कहलाता है, केवळचारित्र तो केवळज्ञानी ही कर सकते हैं और 'ज्ञानी पुरुष' कर सकते हैं। प्रश्नकर्ता : केवळचारित्र और सम्यक्चारित्र में क्या फर्क है? दादाश्री : सम्यक्चारित्र जगत् के लोग देख सकते हैं और केवळचारित्र किसीको दिखता नहीं है। वह इन्द्रियगम्य नहीं होता है। केवळचारित्र, वह ज्ञानगम्य है। प्रश्नकर्ता : श्रद्धा और दर्शन में क्या फर्क है? दादाश्री : दर्शन श्रद्धा से ऊँची चीज़ है। श्रद्धा तो अश्रद्धा भी हो जाती है। किसी पर श्रद्धा बैठी हो तो वह श्रद्धा बदल जाती है, और दर्शन नहीं बदलता। दर्शन को बदलनेवाला चाहिए। देखो किसीका मिथ्यादर्शन बदलता है? गुरु पर छह महीने श्रद्धा रखे तो वह उड़ जाती है, वास्तव में वह श्रद्धा नहीं कहलाती, विश्वास कहलाता है। प्रश्नकर्ता : श्रद्धा और विश्वास में क्या फर्क है?
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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