SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी-५ १०५ प्रश्नकर्ता : गौतम स्वामी को महावीर स्वामी ने अपने से दूर किया वह इसलिए कि गौतम स्वामी को उनसे मोह था, तो वह किस तरह का मोह कहलाएगा? दादाश्री : वह प्रशस्त मोह था। जो मोक्ष जानेवाले होते हैं उन पर भी मोह हो जाए, उसे प्रशस्त मोह कहा है। परन्तु आखिर में वह प्रशस्त मोह हानिकारक नहीं है। वह 'वस्तु' (आत्मा) दिलवा देगा। ज्ञान ज़रा देर से होगा, परन्तु उसमें हर्ज क्या है? वीतरागों पर मोह, जिससे वीतरागता आए ऐसी सभी वस्तुओं पर मोह, वह प्रशस्त मोह कहलाता है। फिर वह मोह मूर्ति पर ही क्यों न हो? परन्तु वह वीतरागता लानेवाली वस्तु है, इसलिए वह प्रशस्त मोह कहलाता है। प्रश्नकर्ता : आपके ऊपर मोह हो तो वह प्रशस्त कहलाएगा न? दादाश्री : हाँ, 'ज्ञानी पुरुष' पर मोह होना तो बहुत उत्तम कहलाता है। कितने ही जन्मों तक त्याग करे, निर्वस्त्र घूमे, तब उसका संसार का मोह घटता है, तब उसे 'ज्ञानी पुरुष' मिल जाते हैं। मन, विरोधाभासी प्रश्नकर्ता : मन समझता है कि इस ओर फँसाव है, पुसाता नहीं और दूसरी तरफ संसार के विचार आते रहते हैं, वह क्या है? दादाश्री : ऐसा है कि मन विरोधाभासी होता है। हमारी समझ के अनुसार मन काम करता रहता है। हम जानते हैं कि अहमदाबाद नोर्थ (उत्तर) में है इसलिए हम हमारा स्टीमर उस ओर चलाते हैं, परन्तु फिर हमारी समझ बदल गई या भूल से दूसरी तरफ मोड़ दिया तो अहमदाबाद आएगा क्या? अर्थात् मन स्टीमर जैसा है। हम जैसा मोड़ेंगे वैसा काम देगा। इसलिए अपने 'ज्ञान' से मन को बहुत अच्छी तरह समझाना चाहिए। फिर मन 'फर्स्टक्लास' चलेगा। मन इस बात को पकड़ता नहीं है और पकड़ ले तब फिर वापिस छोड़ता नहीं।
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy