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________________ आप्तवाणी-५ मनुष्यों का ‘अन्लिमिटेड' है। जानवरों का सीमित होने के कारण उनमें ‘डेवलपमेन्ट' अधिक नहीं हो सकता। उनका मन-बुद्धि- चित्त और अहंकार एक सीमा में है । इस गाय को बरतन दिखाएँ तो वह दौड़तीदौड़ती आती है, उतनी उसे समझ है । साथ-साथ उसे दूसरी कौन-सी समझ है? यदि हम लकड़ी लेकर निकले हों तो वह पास में नहीं आती। इसके अलावा उसे नींद की समझ है। उन्हें मैथुन है। भूख लगे तब खाने की समझ है। क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए, उसकी भी समझ है, जो कि मनुष्यों में नहीं है! ये सभी जानवर सूंघकर फिर भोजन खाते हैं। सिर्फ ये मनुष्य ही कुदरत के बहुत गुनहगार माने जाते हैं। प्रश्नकर्ता : 'मिकेनिकल' बुद्धि मनुष्य को कहाँ तक का ज्ञान देती है? ८५ दादाश्री : सर्वनाश करे तब तक ! मिकेनिकल बुद्धि 'अबव नॉर्मल' हो जाए, तो वह सर्वनाश लाएगी। यह जगत् सर्वनाश की ओर जा रहा है। ‘मिकेनिकल' बुद्धि ही 'अबव नॉर्मल' कर रही है। 'आउटर' बुद्धि की 'लिमिट' इतनी ही है कि जितनी हमारी ज़रूरत हो, उसके आधार पर ही बुद्धि का उपयोग करने की ज़रूरत है । उसमें 'एक्सेस' करने जाए, ‘यह क्या और वह क्या?' वह नुकसान करती है। I प्रश्नकर्ता : मनुष्य खुद का रक्षण करे, वह नेसेसिटी है या नहीं? दादाश्री : करते ही हैं न सभी ! कोई जान-बूझकर मरता नहीं है। प्रश्नकर्ता : मनुष्य को खुद का रक्षण करने के लिए 'एटोमिक न्युक्लियस' (अणुबम ) की ज़रूरत पड़ती है न? दादाश्री : ये ‘अन्नेसेसरी प्रोब्लम' खड़ी करते हैं! ‘फ़ॉरेन 'में ऐसे ‘डेवलपमेन्ट'वाले देश हैं, जहाँ सड़सठवें मील पर फ़ोन की व्यवस्था रखी होती है, फिर अड़सठ मील पर रखी होती है। अब लोग कहते हैं कि सड़सठवें मील के पहले फर्लांग पर हमारी गाड़ी में पंक्चर हो जाए तब हम क्या करेंगे? इसलिए वहाँ पर भी फोन रखो, ताकि हमें चलना नहीं पड़े।
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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