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आप्तवाणी-५
दादाश्री : ‘मिकेनिकल' बुद्धि से संसार की ये सारी बाह्य चीजें उसे मिलती हैं।
प्रश्नकर्ता : यदि 'मिकेनिकल' बुद्धि हो तो सभी को समान मात्रा में ही बाह्य वस्तुएँ मिलनी चाहिए न?
दादाश्री : और फिर, हर एक में मिकेनिकल बुद्धि अलग-अलग मात्रा में होती है। एक समान होती ही नहीं। इन आफ्रिकन को उनके 'डेवलपमेन्ट' के अनुसार बुद्धि होती है, यानी कि हर एक मनुष्य का 'डेवलपमेन्ट' अलग है।
प्रश्नकर्ता : इसमें 'मिकेनिकल' कहाँ आया?
दादाश्री : यह तू खुद अपने आप को जो मानता है, वह सभी 'मिकेनिकल' है। तू खुद ही 'मिकेनिकल' है। जब तक तेरे 'सेल्फ' को नहीं जानेगा तब तक ‘मिकेनिकल' है, परवशता है। यह शरीर भी 'मिकेनिकल' है और ‘मिकेनिकल' का तो कल सुबह एकाध ‘पार्ट' (हिस्सा) घिस गया कि खत्म! 'मिकेनिकल' अर्थात् परवशता। वास्तव में, तू खुद इन मिकेनिकल वस्तुओं से अलग है।
हमें रोज़ पेट में भोजन डालना पड़ता है न? यदि 'मिकेनिकल' नहीं होता न, तो एक ही बार खाया तो काम पूरा हो जाता। एक बार खाने के बाद फिर खाना नहीं पड़ता। यह तो पूरण करते हैं और वापिस गलन होता है। सबकुछ 'मिकेनिकल' है। तू 'खुद' इससे अलग है। तू खुद इस 'मिकेनिकल' को 'जाननेवाला' है। यह मशीनरी एक प्रयोग है और तू प्रयोगी है। इन प्रयोगों का तू 'जानकार' है कि यह क्या प्रयोग हो रहा है, 'चंदूलाल' में क्या-क्या बदलाव हो रहा है! उसके बदले तू कहता है कि, 'मैं चंदूलाल हूँ', तो इतनी बड़ी भूल किस तरह पुसाए?
प्रश्नकर्ता : बुद्धि 'मिकेनिकल' कैसे हुई? जानवरों में बुद्धि होती है या नहीं, कम या अधिक मात्रा में?
दादाश्री : जानवरों में अंत:करण सीमित है-'लिमिटेड' है और